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आचार्यप्रवर अभियन
आचार्यप्रवर अभिनय श्रीआनन्दमश्रीआनन्द
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आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
उगणी सौ सीत्तर वर्ष भलो, गुरुदेव रत्न ऋपि पाया है। अनमोल ज्ञान सुणियो सागे, वैराग्य रंग दिल छाया है ॥११॥ संसार - जाल में नहीं फसू, संजम-पथ लागे प्यारो है। म्हूँ मोह-ममता ने छोडूंला, यो भोग-रोग दुःख खारो है ।।१२॥ दीक्षा रो स्थान है मीरी गाँव, महाराष्ट्र कहायो बड़ भागी। उत्कृष्ट्र भावाँ सं संजम ले, वणग्या है पूरण अनुरागी ।।१२।। जिन आगम रा ज्ञाता बाणग्या, भरपूर ज्ञान-धन ले लीनो । गुरु-काल कियाँ पाछे यांने, आचारज-पद अर्पण कीनो ॥१४॥ गच्छनायक बणिया सम्प्रदाय रा, धरम ने खूब दीपायो है। जब समय एकता रो आयो, तब अद्भुत त्याग दिखायो है ॥१५॥ मुनियाँ रो सम्मेलन भरियो, श्रमण-संघ यो नाम दियो । संगठन रो पावन-पवन चल्यो, आचारज-पद रो त्याग कियो ॥१६॥ एक-स्वर सं सब ने हर्ष धरी, पद प्रधान मंत्री रो संभलायो। बुद्धि री विलक्षणता भारी, ई श्रमण-संघ ने विकसायो ॥१७॥ एक दाण बण्या हा उपाध्याय, संघ-शोभा अविचल पायो है। चारित्र शील गुण रा निधान, घर-घर में गौरव छायो है ॥१८॥ आचार्य-आत्मा रे पट्ट पर, अणी श्रमण-संघ रा नाथ बाण्या। झल मल तो आयो उजियालो, धन जननी पूत-सपूत जण्या ॥१६॥ फल फूल रयो है श्रमण-संघ, दिन दिन यो बढ़तो जावेला । जब कुशल संचालक मिल जावे, नहीं खामी इण में आवेला ।।२०।। साधु संघ ने श्रावक संघ, नित मंगल मोद मनावे है। रहो अजर-अमर आचार्य सदा, आनन्द अखण्ड ही चावे है ॥२१॥ पद-कमल सुलँछन सोहत है, कांति झलकत है मोद मयी । लागे हैं सब जनने बल्लभ, तप-तेज-पुंज मुस्कान नयी ॥२२॥ गौरव गाथा ने कुण गूंथ सके, मानस में अर्हन् भक्ति है। चित निर्मल बाल ब्रह्मचारी, वाणी में अनुपम शक्ति है ॥२३॥ हे नाथ ! आपरा चरणारी, यो दास सदा सेवा चावे । नित मंगल-दर्शन री आशा, आनन्दरा गण मन में भावे ॥२४॥ अभिनन्दन है, अभिनन्द है, आनन्द प्यारा अभिनन्दन है। हो शासन अविचल, आसन अविचल, 'रसिक' चरण में वन्दन है ॥२५॥
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