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आचार्गप्रdear
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आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जब से आचार्यश्री भुसावल पधारे, कार्यक्रम को विशाल रूप दे दिया गया । फिर भी मन में भय था कि हजारों भाई बहनों का किस तरह स्वागत करेंगे । आचार्यश्री के साथ कई साधु-मन्त आयेंगे । परन्तु आचार्यश्री के प्रताप से आनन्द ही रहा।
दीक्षार्थियों की दीक्षा का शुभ दिन आया। आचार्यश्री को 'जैन-धर्म-भूषण' से अलंकृत चादर ओढ़ाई गई । महासती जी कहने लगी--'सतियों की ओर से भी होना चाहिए।' उनकी भावना भी पूरी हुई। कवि-सम्मेलन हुआ। 'संघ की शोभा व प्रतिष्ठा में जो भी अच्छा लगे वह उत्साहपूर्वक करो' इसी भावना पर हम लोग जमे रहे । वह अद्वितीय समारोह निर्विघ्न सम्पन्न हुआ । आचार्य भगवन के उदार हृदय ने सबके मनों पर विजय प्राप्त करली । अब हमें उनके इस अभिनन्दन कार्य को महाराष्ट्र के गौरव के रूप में देखना है । और सरलता लाभ संघ-संगठन हेतु जीवन पर्यन्त मिलता रहे ।
आनन्द के मानसरोवर
0 मुनि भागचन्द 'विजय' [मुनि श्री टेकचन्द जी महाराज के शिष्य
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श्रमणसंघ के सम्माननीय आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषि जी महाराज का नाम गुरुजनों ने बहुत ही सोचसमझकर रखा है। यथानाम तथा गुण के अक्षय आकर हैं।
आनन्द के प्रशांत महासागर हैं। जिधर भी चरण बढ़ाते आनन्द की अभी वर्षा करते चले जाते हैं। इन आनन्द के देवता के दर्शन करने चरणारविन्दों में बैठने और वाणी श्रवण से अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है। उक्त अनुभूति की अभिव्यक्ति जड़ लेखनी द्वारा असंभव एवं अशक्य है।।
आचार्यश्री आनन्द के मूर्तिमान सरोवर हैं। आपका संयमी जीवन ज्ञान, दर्शन, चारित्र की सम्यकसाधना से समृद्ध है। बालकों जैसी निष्कपटता, युवकों जैसी पराक्रमशीलता एवं वृद्धों जैसी अनुभवशीलता का समन्वित रूप है।
समाज का सौभाग्य है कि उसे प्राणिमात्र के प्रति समभाव का अलख जगाने वाले, मैत्री, प्रमोद करुणा का संदेश देने वाले आनन्दार्षि का नेतृत्व प्राप्त है। अतएव अभिनन्दन-ग्रन्थार्पण अथवा अन्य किसी भी रूप में सम्मान किया जाये, सिन्धु में बिन्दु जैसा माना जायेगा।
___ मैं इन शांति के सुधाकर के श्रद्धय श्रीचरणों में सत्कामनाओं की शुभांजलि अर्पित कर हर्षविभोर हूँ।
या
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