________________
श्रामानन्द मन्थश्रागाव.
प्रवर्तक श्री हीरालाल जी म. [प्रसिद्ध बक्ता तथा सुदूर प्रदेशों में जैन धर्म के प्रचारक
HEREST
सुमनाञ्जलि
आचार्य देव का जीवन अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति को निज गुणों की सुवास से सुवासित किए बिना नहीं रह सकता है।
उनके सुकुमार हृदय में जन-मन को आकर्षित करने तथा शांति स्रोतस्विनी बहाने की सर्वातिशायिनी शक्ति विद्यमान है। उनकी सुन्दर बहुमुखी प्रतिभा के प्रतीक है ५० विद्यामन्दिर, अनेक धर्मस्थान !
माँ भारती के इस वरद पूत्र ने निज जीवन का प्रत्येक क्षण परहिताय, पर-सूखाय लगाकर अज्ञानान्धकार की निराकृति हेतु ज्ञान का आलोक परितः फैलाया।
इनका तपःपूत जीवन, वीतरागमुद्रा, अमृतरसस्नाता गिरा, भव्य विचारणा, विचित्र धी, जन्मांतरीय संस्कारों की अमल विरासत हैं। हमारे आचार्य भगवान् जीवन कला के सच्चे कलाकार, अहिंसा के परम उपासक, करुणा के निर्झर, देश, समाज के सुधारकर्ता योगनिष्ठ धर्म नेता हैं जब जब भी समाज में कटुता का, वैमनस्य का, विष पनपा तभी इस दिव्य पुरुष ने शिवशंकर बनकर उसका पान कर समाज को विघटन से बचा लिया।
सुखद-स्मृतियों के कारण आज भी गौरवान्वित है । हमारे हृदय सम्राट का भक्तियोग, ज्ञानयोग एवं कर्मयोग का स्रोत सतत् जीवन पथ पर प्रवाहमान है।
उनके ज्ञान की त्रिपथगा अविरल अनन्त की मधुर स्वर लहरी में आज भी अपने गंतव्य की ओर प्रवाहशील है।
शासनेश से पुनः पुनः कर बद्ध प्रार्थना है-यह ज्ञान की निर्मल ज्योति सहस्रों वर्षों तक अपनी प्रभा से अज्ञानान्धकार में भटकते हए जन मानस को प्रभान्वित करती रहे और मुमुक्ष ओं को शिवगामी बनने का प्रशस्त मार्ग बताये।
शत शत वंदन
- मुनि श्री शांति ऋषि श्रद्धय आचार्यश्री आनन्द ऋषि जी महाराज के चरणारविन्दों में शत-शत वंदन करता हूँ। आपके मार्गदर्शन के फलस्वरूप ही मैं संयम साधना द्वारा आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर है। आपके वरद आशीर्वादों की आकांक्षा के साथ श्रीचरणों में सदैव श्रद्धावनत हैं।
आपथी दीर्घायु होकर प्रत्येक भव्य मुमुक्षु को सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्रको सफल बनाने हेत सम्बल बनें, यही शुभ कामना है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org