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आआनंदी अमिन आया आमद
८६ आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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है | ज्ञानवान आचार्य ही संघ को प्राणवान बना पाते हैं। ज्ञानवान आचार्य ही ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं | ज्ञान के बिना दर्शन, दर्शन के बिना चारित्र, चारित्र के विना सुख, सुख के विना शान्ति, शान्ति के बिना जीवन शून्य के सिवा और क्या हो सकता है ?
आचार्य श्री आनन्दश्री जी महाराज साहब ज्ञान के प्रचार-प्रसार में बड़ी निष्ठा के साथ लगे हुए हैं । आचार्यश्री के ज्ञानालोक से संसार जगमगा उठेगा ।
आचार्यश्री का विहार और व्याख्यान
दीपक प्रकाश देता है पर घूमकर नहीं । सूर्य प्रातः से सायं तक घूमता रहता है और प्रकाश देता है । सूर्य का प्रकाश व्यक्ति विशेष या स्थान विशेष से बँधा नहीं रहता । सूर्य का प्रकाश काल से अवश्य बँधा होता है अर्थात् संध्या होने के बाद सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता । सूर्य का प्रकाश लेने वाले की इच्छा से भी बँधा है कि लेने वाला चाहे तो आँखें मूंद ले चाहे आँखें खोलकर सूर्य के प्रकाश का उपयोग करें । सूर्य के प्रकाश ने अपनी वितरण प्रणाली में अन्तर नहीं आने दिया और आने भी न देगा ।
आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी महाराज साहब सूर्य की तरह वाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक घूम-घूमकर प्रकाश फैलाते रहे हैं और रहेंगे । हाँ, इतना अन्तर अवश्य कि सूर्य आकाश में घूमता है और आचार्यश्री धरती पर। सूर्य दूर रह कर प्रकाश देता है और आचार्यश्री जनता के निकट सम्पर्क में आकर । सूर्य संध्या के बाद प्रकाश नहीं देता और आचार्यश्री संध्या होने के बाद भी प्रकाश देते रहते हैं । पाद - विहार और व्याख्यान का प्रयोजन भी यही है कि ज्ञान का प्रकाश जनता तक पहुँचाया जाये ।
आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी महाराज साहब बम्बई, पूना से जम्मू काश्मीर तक घूमे और भारतीयता के साथ नैतिकता और धार्मिकता का नाता जोड़ा ।
आचार्यश्री और संघ - विकास
एक ही सूर्य की किरणों से रंग पाने वाले पुष्पों में भी रंगों का वैविध्य दृष्टिगोचर होता है । ऐसे ही एक ही आचार्य से प्रेरणा पाने वाले व्यक्तियों में भी रुचि वैचित्र्य दृष्टिगत होता है । आपकी प्रेरणा से किसी पर तपस्या का रंग चढ़ा तो किसी पर ज्ञान का। किसी पर अध्ययन का तो किसी पर लेखन का तो किसी पर प्रकाशन का। किसी पर संगठन का तो किसी पर समर्थन का । किसी पर दान का तो किसी पर शील का | किसी पर ध्यान का तो किसी पर संयम विधान का ।
आचार्य श्री के पुनीत नेतृत्व में संघीय विकास चतुर्मुखी ही नहीं, बहुमुखी है ।
आचार्यश्री के प्रति शुभेच्छा
आचार्यश्री आनन्द ऋषि जी महाराज साहब जब पचहत्तरवें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं तो हम कामना करें कि आप शतायु सहस्राय लक्षायु बनकर हमारा मार्गदर्शन करते रहें । हमें आपके नेतृत्व में पूर्ण विश्वास है । हमें आपकी देखरेख में ही मुक्ति मंजिल को पाना है । हमें कुछ कर दिखलाना है । हमें प्रेम और संगठन को सुदृढ़ बनाना है । अलग-अलग छँटने से शक्तियाँ बिखर जाती हैं और संगठन से शक्तियाँ निखर जाती हैं ।
आचार्यश्री आनन्द ऋषि जी महाराज साहब के अन्तरग को शब्दावलियों से नहीं बाँधा जाता, वह असीम है, अरूप है, अगम्य है, और आनन्दस्वरूप है ।
मैं कहता हूँ कि आचार्यश्री आनन्द ऋषि जी महाराज साहब के अन्तरंग में समूचा श्रमण संघ प्रतिबिम्बित है । अन्तरंग की उज्ज्वलता ही हमें हमारी आकृतियों को निरखने का प्रकृतियों का परखने का, विकृतियों को हटाने का अवसर देती है ।
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