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श्री आनन्द अन्थ: 9 श्री आनन्दत्र ग्रन्थ
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आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि जी का अन्तरंग चित्र : शब्द पटल पर
महानता
के मूल
मानवता का सहज सिद्ध रूप साधुता है । साधुता आत्मा में उपजती है उपजाई नहीं जाती । स्वाध्यायशील साधु ही स्वाध्याय का प्रेरक और प्रवर्तक बनकर उपाध्याय पद पर प्रतिष्ठित होता है । स्वाध्याय के अनुरूप आचरण करने वाले और करवाने वाले उपाध्याय को आचार्य के पद तक पहुँचने का अधिकार प्राप्त हो जाता है | पद और पदासीन की कुछ जिम्मेदारियाँ भी होती हैं । जिम्मेदार व्यक्ति का पूर्ण ईमानदार होना आवश्यक है । ईमानदारी ही महानता की ओर अग्रसर करती हैं। महानता आत्मा का भीतरी विकास और सहज सिद्ध गुण है । बाह्य उपकरणों और साधनों, प्रशंसा और प्रमाण-पत्रों, वंदना और अभिनन्दनों, प्रचार और प्रसारों, चर्चा और व्याख्यानों, लेख और निबन्धों, लेखन और अनुवादों, प्रकाशन और संस्थानों से महानता को मापना एक अपराध होगा । महानता को मापा नहीं जाता, परखा जाता है और पाया भी जाता है ।
सुभाष मुनि 'विशारद' [ मधुर गायक, कविता तथा प्रवक्ता ]
यहाँ पर जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी वर्धमान श्रमणसंघ के ज्योतिर्धर आचार्यश्री आनन्द ऋषि जी महाराज साहब के पचहत्तरवें जन्म दिवस पर उनका ही "अन्तरंग चित्र शब्द पटल पर उतारने की चेष्टा की जा रही है । यह शब्द चित्र आचार्यश्री के अन्तरंग को चित्रित कर पाएगा या नहीं, यह मैं नहीं जानता । लेकिन इस चित्र में जो टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं उभरेगी वे आचार्य श्री के प्रति श्रद्धा को अवश्य प्रकट कर पाएगी । ऐसा अनुमान नहीं, दृढ़ विश्वास है ।
आचार्य श्री की क्षमता और शूरता
शूरता को क्र ूरता से बचाने के लिए ही मानो क्षमा ने देह धारण किया हो । असमर्थ के लिए क्षमा का कोई महत्त्व नहीं है । सक्षम ही क्षमा करते हैं और कर सकते हैं । औरों के किये हुए अपराधों को क्षमा किया जा सकता है लेकिन स्वयं के अपराधों को क्षमा नहीं किया जा सकता । संयम की आराधना में विराधना के अवसर पर ही आत्मकृत अपराध माने गए हैं। आचार्य का सीधा और सरल यही अर्थ होता है कि विराधना के विवरों को रोके । शिष्य समुदाय और संघ को विराधना से बचाए और आराधना की ओर मोड़े । आचार्यश्री की क्षमाशीलता और शूरता ही विराधक को आराधक बनाती है । पतित्व को पावन बनाने की परम्परा का पालन पुरुषोत्तम ही कहते हैं, अन्य नहीं ।
श्रद्धेय आचार्यश्री आनन्द ऋषि जी महाराज साहब के अन्तरंग में क्षमता और शूरता का चित्र ' के साथ उभरा है ।
अत्युत्तमता
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