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डॉ० नरेन्द्र भानावत एम. ए., पी-एच.डी.
[ हिन्दी साहित्य के प्रमुख समीक्षा लेखक, सम्प्रति-- राजस्थान विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक ]
अभिनन्दन : एक जागरूक चेतना का
आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज साहब प्रखर चिन्तक, प्रभावी व्याख्याता, प्रबल संगठक और 'विशिष्ट साधनाशील संत हैं । अपने सुदीर्घ साधनामय जीवन में जहाँ आप आत्म-कल्याण की ओर प्रवृत्त रहे वहीं जन-कल्याण की ओर भी सदैव सचेष्ट रहे । सरलता के साथ भव्यता, विनम्रता के साथ दृढ़ता और ज्ञान-ध्यान के साथ संघ-संचालन की प्रशासनिक क्षमता आपके व्यक्तित्व की अन्यतम विशेषताएँ हैं । आपके व्यक्तित्व में आकर्षण है जिससे व्यक्ति आपकी ओर खिंचता चला आता है। उनमें विशेष प्रभाव है, जो व्यक्ति को अपनी ओर खींच लेता है।
मुझे स्मरण आता है, मैंने सबसे पहले आज से लगभग २२ वर्ष पूर्व सादड़ी सम्मेलन में इस महान विभूति के दर्शन किये थे। तब मैं श्री गोदावत जैन गुरुकुल, छोटी सादड़ी का छात्र था और गुरुकुल की ओर से ही हम कई छात्र इस सम्मेलन में सम्मिलित हुए थे । प्रारम्भ से ही मुझे साहित्य के प्रति विशेष रुचि थी । उन दिनों मेरी कविताएँ 'जैनप्रकाश' आदि पत्रों में प्रकाशित होने लग गई थीं। जैनप्रकाश के तत्कालीन सम्पादक श्री रत्नकुमार जी 'रत्नेश' के सहयोग से मुझे सम्मेलन की कार्रवाई को निकट से देखने और समझने का तथा जैन-जगत की कई विभूतियों के प्रथम बार दर्शन करने का अवसर मिला था । कइयों के चित्र आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित हैं । आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज साहब के व्यक्तित्व का जो दर्शन मैं इस सम्मेलन में कर सका, वह बाद में मेरे लिये उत्तरोत्तर प्रेरणादायक
बनता गया ।
श्री जवाहर विद्यापीठ, कानोड़ में जो उस समय श्री विजय जैन पाठशाला के रूप में था, मैंने पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई की थी। उस समय मैंने 'श्री तिलोक रत्न जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड, ' पाथर्डी की प्रारम्भिक परीक्षाएँ भी दी थीं। बाद में अपने कालेज अध्ययन के साथ-साथ भी मैं इस बोर्ड की 'जैन सिद्धान्त प्रभाकर' तक की परीक्षाएँ देता रहा और मेरे जैसे हजारों छात्र इस बोर्ड के माध्यम से जैन धर्म और दर्शन का अध्ययन कर सके । इस बोर्ड की परीक्षाओं के प्रति हमारे मन में बड़ा उत्साह और बोर्ड के अधिकारियों के प्रति बड़ी श्रद्धा और सम्मान का भाव रहता था । जब मुझे यह जानने का अवसर मिला कि इस परीक्षा बोर्ड की स्थापना के मूल प्रेरक आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज साहब ही हैं तो उनके सृजनधर्मी, क्रान्तदर्शी व्यक्तित्व के प्रति मेरी श्रद्धा और अधिक बढ़ गई । आज समाज में धार्मिक अध्ययन-अध्यापन का जो वातावरण है, उसका बहुत बड़ा श्रेय पाथर्डी के धार्मिक परीक्षा बोर्ड को है और बोर्ड के प्रेरणा-स्रोत के रूप में आचार्यश्री का समाज पर कितना उपकार है, अप्रत्यक्ष रूप से कितने लोग उनसे अनुप्राणित हुए हैं, धर्म-चिन्तन के क्षेत्र में प्रोत्साहित हुए हैं, उसे शब्दों में आँकना मुश्किल है।
और फिर एक संस्था ही क्या, आचार्यश्री ने तो ऐसी कई संस्थाओं को जीवन और पुनर्जीवन दिया है। आचार्यश्री ने शायद यह बहुत पहले महसूस कर लिया था कि नैतिक शिक्षण के अभाव में
अब
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ॐ
आचार्य प्रवर अभिन्दै आनन्द अन्थपुन
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