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डॉ. भागचन्द जैन 'भास्कर' एम.ए., पी-एच. डी. [बहुभाषाविज्ञ, शोध लेखक, संप्रति पालि-प्राकृत विभाग, नागपुर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष ]
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विचार, आचार और प्रचार के त्रिवेणी संगम महर्षि आनन्द और उनका तत्त्वचिन्तन
एक विश्वसन्त
__ महर्षि आनन्द यद्यपि स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय के प्रधानाचार्य हैं परन्तु उनकी सार्वभौमिक दृष्टि ने उन्हें एक विश्वसन्त की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। उनकी जीवनधारा एक ओर जहाँ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र की पवित्र त्रिवेणी का संगम है, वहीं दूसरी ओर कल्याणकारिणी सेवा और सरस्वती की समन्वित भूमिका है। किसी युगप्रवर्तक ऋषि के लिए महर्षि होने का यह अपेक्षित संकल्प है, जिसे आचार्यप्रवर आनन्दऋषि ने बड़ी कुशलतापूर्वक अजित किया है। महाराष्ट्र को विभूति
वि० सं० १६५७ में जन्मे बालक नेमिचन्द ने चिचोड़ी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) को एक पुण्यस्थली का रूप दे दिया। पिता देवीचन्द गूगलिया और माता हुलासाबाई, दोनों इतिहास के व्यक्तित्व बन गये। चारित्रचूडामणि सन्त रत्नऋषि जी के सान्निध्य में लगभग १३ वर्ष की अवस्था में बालक नेमिचन्द्र आनन्द के नाम से प्रवजित हुए । विभिन्न भाषाओं और साहित्य-विधाओं के अध्येता साधक आनन्द ने सं० २०२१ में संघ के आचार्य पद को सुशोभित किया । ज्ञानज्योति के ज्योतिस्तम्भ
। महर्षि आनन्द ज्ञानज्योति के अजर-अमर स्तम्भ हैं। उन्होंने अध्यात्म-साधना के समान ज्ञानसाधना का भी बीड़ा उठाया। वे सही अर्थ में स्व-पर-प्रकाशक ज्ञान के प्रतीक बन गये। एक ओर जहाँ उन्होंने स्वयं सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, मराठी, गुजराती और अंग्रेजी भाषाओं में विद्वत्ता प्राप्त की, वहीं दूसरी ओर वे अनेक शैक्षणिक और साहित्यिक संस्थाओं के प्रस्थापक भी बने। उनके द्वारा प्रस्थापित और व्यवस्थापित संस्थाओं के नाम इस प्रकार हैं१. श्री तिलोक जैन विद्यालय पाथर्डी
(वि. सं. १६८०) २. श्री रत्न जैन पुस्तकालय, पाथर्डी
(वि. सं. १९८४) ३. श्री जैनधर्म प्रचारक संस्था, नागपुर
(वि सं. १६८४) ४. श्री अमोल जैन सिद्धान्तशाला, पाथर्डी
(वि. सं. १६६३) ५. श्री तिलोक रत्न स्थानक० जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड, पाथर्डी (वि. सं० १९९३) श्री अमोल जैन पाठशाला, दादर, बम्बई
(वि. सं. १६६४) ७. श्री महावीर जैन पाठशाला, बोरी (पूना)
(वि. सं. १६६८) ८. श्री रत्न जैन बोडिंग, बोदवड़
(वि. सं. १९९६) ९. श्री महावीर सार्वजनिक वाचनालय, चिचोड़ी
(वि. सं. २००५)
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