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आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सन् १९५२ में पूज्य गुरुदेव श्री ताराचन्द जी महाराज के साथ हमारा वर्षावास सादड़ी में था। पूज्य गुरुदेवश्री की प्रबल प्रेरणा से सादड़ी में बृहद् साधु-सम्मेलन का आयोजन हुआ। अजमेर-सम्मेलन के पश्चात् दीर्घकाल के बाद यह सम्मेलन हुआ। श्रमण संघ का निर्माण हुआ। आपश्री को प्रधानमन्त्री पद प्रदान किया। मैं उस समय साहित्य-शिक्षण मन्त्री बना। मंत्री होने के नाते प्रधानमंत्री के साथ सम्पर्क होना आवश्यक था। सोजत में मंत्री-मण्डल की बैठक में पुनः आपश्री के दर्शन हए। गम्भीरता के साथ विचार-चर्चाएँ हई। उसके पश्चात् भी श्रमणसंघीय सन्तों को परीक्षाएँ देनी चाहिए या नहीं, इस प्रश्न को लेकर आपश्री से खुलकर पत्राचार हुआ।
पूज्य गुरुदेव महास्थविर श्री ताराचन्द जी महाराज की वृद्धावस्था के कारण भीनासर-सम्मेलन में उपस्थित न हो सका। भीनासर-सम्मेलन में आपश्री उपाध्याय बने और व्याख्यानवाचस्पति मदनलाल जी महाराज प्रधानमंत्री बने । आचार्य और उपाचार्य के अधिकारों के प्रश्न को लेकर श्रमण संघ की स्थिति विषम हो गई। आचार्यश्री और उपाचार्यश्री के स्वर्गवास के पश्चात् आपश्री अधिकृत अधिकारी मुनियों के परामर्श से श्रमण संघ का संचालन करने लगे। श्रमणसंघीय गम्भीर समस्याओं को सुलझाने के लिए और सर्वानुमति से आचार्य बनाने के लिए अजमेर में शिखर सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया । उस सम्मेलन में आपश्री पधारे। गुलाबपुरा, विजयनगर, ब्यावर और अजमेर सभी स्थलों पर आपश्री के साथ रहे। गुलाबपुरा से लेकर अजमेर तक की इस लम्बी यात्रा में ऐसे अनेक सामाजिक प्रश्न आए, जिससे साधारण मानव अपने आपे को भूल जाय, पर आपश्री ने अपूर्व धैर्य के साथ उन सभी समस्याओं के समाधान का प्रयास किया, पर विचलित नहीं हुए। मैंने अनुभव किया कि आपकी प्रगति का यही मूल मंत्र है।
आचार्यश्री के साथ मेरा अनेक बार मतभेद हुआ है। कितनी ही बातें मुझे उनकी बहुत ही पसन्द आई हैं और कितनी ही बातें मुझे पसन्द नहीं आई । मैंने उनका बहुत ही जोरदार शब्दों में विरोधकिया, पर आपश्री कभी भी मेरे पर नाराज न हए, आपकी कृपादृष्टि में किञ्चिन्मात्र भी अन्तर नहीं आया। पितृ-तुल्य वात्सल्य और आत्मीयता में कभी कमी नहीं आई। आचार्य जैसे गौरवपूर्ण पद पर आसीन होते हुए भी अपनी भूल ज्ञात होते ही उसे स्वीकारने में भी कभी संकोच का अनुभव नहीं किया। यह है आपकी महानता !
राजस्थान प्रान्तीय सन्त-सम्मेलन साण्डेराव (राजस्थान) में पूनः आपश्री के दर्शनों का सौभाग्य मिला और सादड़ी तक आपश्री की सेवा में रहने का अवसर भी मिला। मैंने अनुभव किया-शरीर साथ नहीं देता है तो भी आपश्री के मन में अपार उत्साह है।
___ हमारे संघ का यह परम सौभाग्य है कि आचार्यश्री जैसा नररत्न हमारा कर्णधार है। हमारी आशाएँ और आकांक्षाएँ उनमें केन्द्रित हैं। उनकी सफलता में हमारा वैभव है, उनकी शक्ति में हमारा गौरव है। वे दीर्घकाल तक स्वस्थ रहकर संघ का कुशलता के साथ संचालन करते रहें। उनके नेतृत्व में हमारा संघ ज्ञान, दर्शन और चारित्र की निरन्तर अभिवृद्धि करता रहे, यही मेरी हार्दिक शुभकामना व भावना है।
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