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श्राआनन्या माआप अपना
श्रद्धार्चन : आचार्यदेव के प्रति
-मुनि सुभाषचन्द्र "जैनसिद्धान्त विशारद" [घोरतपस्वीरत्न श्री वृद्धिचन्दजी महाराज के सुशिष्य कवि एवं कुशलवक्ता ]
जया य
मनोहर छन्द
_ [३] सरल मृदुता अति, चन्दन शीतलचन्द ।
जैनधर्म दिवाकर, विभाकर समता के । वदन सदन शुभ, चमके मुख नूर है ।। प्रगटाये आत्मज्योति, मिथ्यात्व हटाते हैं । पूज हैं प्रवर वर, सब सन्त सिरताज ।
प्रभावशाली आकर्षक, स्नेह भरी दृष्टि अति । शान्तमूर्ति ज्योतिर्धर, सत्य तप शूर है॥
तेजस्वी ललाट भव्य, निश्चल कहाते हैं । श्रमणसंघ पट्टधर, द्वितीय आचार्य आप । सिद्धान्तिक निष्ठा साथ, व्यवहार में वाक्पटु । सहिष्णुता अद्भुत, जीवन सुमधुर है ॥ गम्भीरता वाणी आप, मधु बरसाते हैं ।। कहत सुभाष मुनि, धन्य धन्य दिव्य ज्योति ।
कहत सुभाष मुनि, धन्य धन्य दिव्य ज्योति । दया के सागर देव, क्षमा से भरपूर है।
क्षमता का आदर्श हो, सर्वत्र दिखाते हैं ।। [२]
[४] बालब्रह्मचारी भारी, महान ही महायोगी ।
पवित्र पावन मन, परमार्थ परिचायक । आनन्द कर्तव्य निष्ठा, सब प्रियकारी है।
परम आचार्य देव, परम सुखकारी है । परम ध्यानी गुणीवर, मधुसम वाणी धर।
आत्म के अमन्द चन्द, आनन्द भण्डार अति । जैनधर्म नेता श्रेष्ठ, दुगुर्गों को टारी है ।।
शुद्धाचारी नम्रता ये, जीवन में भारी है। जीतकर काम क्रोध, साधना के पथ पर ।
संघ शिरोमणी प्यारा, जैन जग उजियारा । अग्रसर हुए पूज्य, पर उपकारी है ।। प्रखर पण्डित ज्ञानी, सच्चे संयमधारी हैं। कहत सुभाष मुनि, धन्य धन्य दिव्य ज्योति ।
कहत सुभाष मुनि, धन्य धन्य दिव्य ज्योति । सब के ही मन भावे, आप मनहारी है।
अहर्निश दमकत, पूज्य क्रान्तिकारी है।
दोहा शासनेश मंगल कामना, चिर आयु हो देव । करबद्ध प्रार्थना यह, कीर्तिमान सत्मेव ।। श्रमण संघ फूले फले, तब छत्तर की छाय। बने संगठन प्रबल अति, सब जन मन हुलसाय ॥ अभिनन्दन हो पूज्यवर, दिन दिन तव जयकार । 'श्रद्धा सुमन' अर्पण यह, करो पूज्य स्वीकार ॥
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