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विविध विशेषताओं के संगम : आचार्यप्रवर श्री आनन्दषि ४३
व्यक्ति ही नहीं किन्तु देश के चोटी के विद्वान और नेतागण भी प्रभावित हुए हैं। आपकी वाणी में मृदुता, मधुरता और सहज सुन्दरता है। भावों की लड़ी, भाषा की झड़ी और तर्कों की कड़ी का ऐसा मधुर समन्वय होता है कि श्रोता झूम उठता है । आपका प्रवचन मधुर ही नहीं, अति मधुर होता है । आपश्री के प्रवचन की तुलना महात्मा गांधी के प्रवचन से सहज रूप से कर सकते हैं ।
कलामय जीवन
आचार्यश्री का जीवन कलामय है । वे कला को जीवन के लिए मानते हैं, वे लघु-से लघु कार्य को और बड़े-से-बड़े कार्य को लालित्य और माधुर्य से परिपूर्ण करना चाहते हैं । साधारण-से- साधारण कार्य को भी पूर्ण मनोयोग से करना चाहते हैं । आपश्री का मन्तव्य है कि जो कला आत्मा को आत्मदर्शन करने की प्रबल प्रेरणा नहीं देती, वह कला नहीं, अकला है। कला की कसौटी सौन्दर्य है । जो सुन्दर नहीं है, हितकर नहीं है, वह कला नहीं है, और धर्म भी नहीं है ।
बहु भाषाविद
भाषा की दृष्टि से आचार्यश्री का परिज्ञान बहुविध और बहुव्यापी है । संस्कृत, प्राकृत आदि प्राचीन भाषाओं पर उनका पूर्ण अधिकार है। हिन्दी, गुजराती, मराठी और राजस्थानी भाषा में धाराप्रवाह से प्रवचन कर सकते हैं, लिख सकते हैं। मराठी आपश्री की मातृभाषा है । सन्त तुकाराम के अभंगों को और अन्य मराठी सन्तों के भजनों को आप बड़ी तन्मयता के साथ गाते हैं ।
महापुरुष
त्याग और मनस्विता, आदर्श चिन्तन और पुरुषार्थमय जीवन, उदार वृत्ति और सत्य पर दृढ़ रहने का आग्रह, प्रेम-पेशल हृदय और निर्भय कर्तव्यनिष्ठा, सबके प्रति आदर भाव और सप्रयोजन विरोध करने की क्षमता, विनम्रता और सैद्धान्तिक अकड़ एक साथ नहीं रह पाती । जहाँ रहती है वह मानव नहीं महामानव है । आचार्यश्री के जीवन में इनका अद्भुत मिलन हुआ है, इसलिए वे साधारण पुरुष नहीं, महापुरुष हैं ।
अभिनन्दन
अमृतपुत्र आचार्य प्रवर का एक विराट् काय अभिनन्दनग्रन्थ प्रकाशित होना चाहिए, यह मेरी हार्दिक उत्कष्ट अभिलाषा थी, मैंने अनेकों बार डाकलियाजी, पं० बद्रीनारायणजी शुक्ल और स्नेह सौजन्यमूर्ति कुन्दन ऋषिजी को प्रेरणा दी, जो कार्य आज से वर्षों पूर्व होना चाहिए वह कार्य आज हो रहा है, देर अवश्य हुई है पर अन्धेर नहीं हुआ, यह प्रसन्नता है। श्रद्धा, स्नेह, सम्मान आदि भाव व्यक्त करना ही उनका अभिनन्दन करना है। मैं मानता हूँ कि आचार्यप्रवर का यह अभिनन्दन उनके सद्गुणों का अभिनन्दन है, उन्होंने सुदीर्घकाल तक जो समाज की सेवा की है, मार्गदर्शन दिया है, उसी का यह प्रतिफल है ।
मंगल कामना
आचार्यप्रवर सुदीर्घकाल तक स्वस्थ और प्रसन्न रहकर हम सभी का कुशल नेतृत्व करते रहें । समाज को ज्ञान, दर्शन और चारित्र की दृष्टि से निरन्तर आगे बढ़ाते रहें, मैं अपनी असीम श्रद्धा के साथ शत-शत मंगल कामनाएँ अर्पित करता हुआ गौरव का अनुभव करता हूँ ।
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