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ज्योतिर्धर आचार्य श्री आनन्दऋषि : जीवन-दर्शन
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तक जब आप पहुँच गए, आपके हृदय में तीव्र वैराग्य उदित हुआ तथा आपने आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज के चरणों में भागवती दीक्षा ग्रहण की।
आप अत्यन्त सेवाभावी तथा उत्तम विचारों को धारण करने वाले मुनि थे। आपके द्वारा आचार्य श्री को समय-समय पर अत्यन्त उपयोगी परामर्श प्राप्त हुआ करते थे किन्तु आयुष्य-कर्म की अल्पता के कारण करीब दस वर्ष तक साधु-जीवन का पालन करके ही आप स्वर्गवासी बन गए। ...
(३) श्री मोतीऋषि महाराज -आप नाम गांव निवासी सेठ हजारीलाल जी साहब कांकरिया के सुपुत्र थे। वि० सं० १९५४, भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी को माता सुन्दरबाई के उदर से आपका जन्म हुआ। माता-पिता का स्वर्गवास होने के पश्चात् आपको संसारिक सुख भोगों से अरुचि हो गई तथा वि० सं० १९६२, फाल्गुन शुक्ला पंचमी को आपने आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज के करकमलों से भागवती दीक्षा ग्रहण की।
आपने संयम ग्रहण करके संस्कृत तथा प्राकृत आदि भाषाओं का अध्ययन किया तथा ऋषिसम्प्रदाय के इतिहास को भी लेखनीबद्ध किया। आपके होनहार होने के कारण समाज को आपसे बड़ी-बड़ी आशाएँ थी किन्तु कराल काल ने अकस्मात ही भोपालगंज (भीलवाड़ा) में आपको उदरस्थ कर लिया।
(४) श्री हीराऋषि जी महाराज --आप कच्छ प्रान्तीय देसलपुर निवासी बीसा ओसवाल श्री खिमजीभाई के होनहार पुत्र थे। जब महामान्य चरितनायक जी का मलाड (बम्बई) पदार्पण हुआ, उनके प्रथम प्रवचन में ही आपको तीव्र वैराग्यभाव उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप आपने संयम ग्रहण करने का दृढ़ निश्चय कर लिया तथा अपने पिताजी के द्वारा पुनः-पुनः रोके जाने पर भी लोणावला निवासी श्री मोहनलाल जी चोरडिया के सहयोग से वि० सं० १६६६, माघ शुक्ला षष्ठी, रविवार को पच्चीस वर्ष की आयु में आचार्य श्री जी का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया।
काल की गति बड़ी गहन है। इसको बड़े-बड़े विश्व-विजयी पुरुष भी नहीं रोक सके । आपको दीक्षा के बीसवें दिन ही दस्त और वमन की शिकायत हुई तथा इक्कीसवें दिन आप अपनी नश्वर देह को छोड़कर स्वर्गवासी बने ।
(५) श्री ज्ञानऋषि जी महाराज-आपकी जन्मभूमि सिरसाला (पूर्व खानदेश) थी। आपका पूर्व नाम श्री बाबूलाल था। वि० सं० १९६० के मन्दसौर चातुर्मास में आपको परम श्रद्धेय आचार्य श्री जी की सेवा में रहने का अवसर प्राप्त हुआ तथा उसी समय से आपमें वैराग्य के अंकुर प्रस्फुटित हो गये किन्तु घरवालों ने आपकी शादी आपकी अनिच्छा होने पर भी सम्पन्न कर दी। फल यह हुआ कि आपने स्वयं तो संयम ग्रहण करने का निश्चय किया ही, साथ ही अपनी पत्नी को भी अपने विचारों के अनुकूल कर लिया । वि० सं० १९६६ में आषाढ़ शुक्ला दूज के दिन आपकी पत्नी परम पूज्य महासती जी श्री रंभावर जी महाराज के पास पूज्य श्री सुमतिकुँवर जी महाराज की नेश्राय में दीक्षा ग्रहण कर ली और उसके चार दिन पश्चात् ही मिरी गाँव में आपने स्वयं भी आचार्य श्री जी के चरणों में मुनिधर्म स्वीकार कर लिया।
(६) श्री पुष्पऋषि जी महाराज-आप मारवाड़ में राणावास निवासी श्रीमान् छोगालाल जी कटारिया के पुत्र हैं। वि० सं० २००६ में श्रद्धेय आचार्य श्री राणावास पधारे तथा उनके सदुपदेशों से प्रभावित होकर मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी, गुरुवार के शुभ दिन उदयपुर में आचार्य श्री जी के कर-कमलों से आपने भागवती दीक्षा ग्रहण की।
आपको 'ओऽम् शांति' का जाप अत्यधिक प्रिय है तथा अपने सम्पर्क में आने वालों को भी आप इसके जप की प्रेरणा दिया करते हैं।
(७) श्री हिम्मतऋषि जी महाराज --आप मंगरूल चवाला (बरार) निवासी श्री छोगमल जी
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