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ज्योतिर्धर आचार्य श्री आनन्दऋषि जीवन-दर्शन
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किस प्रकार यहाँ उपस्थित किया जाय, जबकि उन श्रावक को न कोई सूचना दी गई और न ही उनकी ही कोई सूचना आने के सम्बन्ध में थी।
संयोग की बात है कि अचानक ही आचार्य श्री जी के मुखारविंद से शब्द निकले - "मेरा मन कह रहा है कि वे श्रावक आज ही सायंकाल तक आप लोगों के पास आयेंगे ।"
यह सुनकर सभी संत बड़े चकित एवं हैरान रह गये, किन्तु सायंकाल होते-होते देखा गया कि मचमुच ही वे धावक स्थानक की ओर चले आ रहे हैं। वचनसिद्धि के इस अद्भुत चमत्कार ने केवल संतों को ही नहीं, अपितु ग्रामनिवासियों को भी आचार्यदेव के समक्ष नतमस्तक कर दिया ।
स्पर्श सिद्धि वचन-सिद्धि के साथ ही आपकी स्पर्श- सिद्धि भी कम चमत्कारपूर्ण नहीं है। मालेर कोटला की एक घटना है- मालेरकोटला निवासी श्री राममूर्ति लोहटिया रोगग्रस्त हो गए तथा इनकी गर्दन में कुछ ऐसी खराबी हो गई कि डाक्टर को छह महीने तक रहने वाला प्लास्टिक का एक पट्टा अपना पड़ा। सौभाग्यवश उन्हीं दिनों चरिसनायक आचार्य श्री जी महाराज मालेरकोटला पधारे तथा श्री राममूर्ति आपके दर्शनार्थ पहुंचे। ज्योंही इन्होंने वंदन करने के लिये अपना मस्तक झुकाया, अचानक ही आचार्यसम्राट का वरदहस्त इनकी गर्दन को छू गया।
हाथ का स्पर्श होने की देर थी कि गर्दन की तकलीफ कम होने लगी तथा छह महीने बंधा रहने वाला पट्टा कुछ दिनों में ही छूट गया ।
विष पर विजय - चाँदा निवासी सेठ तिलोकचन्द्र जी गुंदेचा ने एक नियम ले रखा था कि वे प्रतिवर्ष चातुर्मास में एक महीना आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज की सेवा में गुजारा करेंगे।
अपने नियमानुसार वे वि० सं० २०१५ में आचार्य श्री जी के चातुर्मास में पाथर्डी आए। गुंदेवा जी अपने गाँव से बैलगाड़ी द्वारा ही पाथर्डी आए थे। वहाँ तक पहुंचते-पहुंचते रात्रि हो गई। निर्दिष्ट स्थान पर गाड़ी रोकी गई तथा उनका मजदूर सामान उतारने लगा।
अशुभ संयोग से मजदूर को एक विशालकाय एवं विषधर सर्प ने इस लिया। मजदूर छटपटा उठा । श्री गुंदेचा जी को और कोई उपाय उस समय नहीं सुझा और वे मजदूर को लेकर तुरन्त ही आचार्य श्री जी के निवास स्थान की ओर चल पड़े ।
सभी जानते हैं कि विष का असर शरीर पर बड़े वेग से पहुँचते-पहुँचते तो मजदूर की हालत बहुत ही शोचनीय हो गई। गुरुदेव से कहा - "भगवन् ! दया करके इसकी रक्षा कीजिये मुझे तो कलंक लगेगा ही, इसका परिवार भूखा मर जायगा
गुंदेचा जी की प्रार्थना सुनकर और मजदूर की दशा देखकर आचार्य श्री जी ने तुरन्त ही उसे मंगल-पाठ सुनाना प्रारम्भ कर दिया। मंगल-पाठ का श्रवण करते ही मजदूर की स्थिति सुधरने लगी तथा उसे शांति का अनुभव होने लगा। कुछ देर में ही विष का भयानक प्रभाव पर्याप्त मात्रा में कम हो गया। अगले दिन तो वह मजदूर अपने को नव-जीवन प्रदान करने वाले सिद्धपुरुष आचार्य श्री आनन्दऋषिजी महाराज का गुणगान करता हुआ गाँव में घूमने लगा ।
होना है। अतः आचार्यसम्राट के समीप श्री गुंदेचा जी ने अत्यन्त विकल होकर अगर यह काल का ग्रास बन गया तो बर्बाद हो जायगा ।"
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रुकता हुआ दिल धड़कने लगा- मालेरकोटला में डॉ० दयाकृष्ण जी एक अत्यन्त प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं । एक बार उन्हें बड़ी बुरी तरह से हार्ट-अटैक हो गया। हालत ऐसी हो गई कि उन्हें मृत ही मान लिया गया तथा चारों ओर उनके प्राणांत की बात फैल गई ।
स्वनामधन्य आचार्य श्री जी उन दिनों मालेरकोटला में ही विराज रहे थे । कुछ व्यक्ति आपके पास बदहवास से आए और आपसे डॉ० साहब को मंगल पाठ सुनाने की विनती करने लगे।
लोगों के आग्रह पर गुरुदेव डॉ० दयाकृष्ण जी के यहाँ पधारे तथा उन्हें मंगल पाठ सुनाया। पर
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आयाम प्रवरा आगरदन आआनन्द
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