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प्राणायाम : एक चिन्तन
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कुण्डलिनी का वर्णन भी इन बीजाक्षरों की सहायता से किया गया है। जैन-आचार्यों ने वायु-विजय का सम्बन्ध रोगमुक्ति के साथ जोड़ा है। आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के लिए और योगशास्त्र का अभ्यास करने वाले चिन्तकों के लिए यह वर्णन एक प्रकार का आह्वान है। अगर आधुनिक जीवन में उसका समुचित प्रतिफल प्राप्त होता है तो योग-मार्ग की चिकित्सा पद्धति में, जैन-योग-शास्त्र का प्रदाय निश्चय ही अनूठा सिद्ध होगा।
आचार्य हेमचन्द्र के योगशास्त्र में प्राणायाम के साथ-साथ, स्वर-शास्त्र का भी संकेत मिलता है। स्वरशास्त्र के अनुसार सूर्यनाड़ी और चन्द्रनाड़ी, शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष में प्रत्येक तिथि को बदलती रहती हैं और कभी सूर्यनाड़ी, कभी चन्द्रनाड़ी और कभी पिंगला नाड़ी का प्रवाह रहता है। हेमचन्द्राचार्य ने इनके लक्षणों का विस्तृत वर्णन किया है और इन नाड़ियों के चलने के साथ-साथ, जीवन सम्बन्धी सभी प्रकार के लक्षणों और भविष्य-ज्ञान सम्बन्धी-लक्षणों का भी वर्णन किया है । यह आश्चर्य की ही बात है कि विभिन्न प्रकार के लक्षणों का वर्णन देकर मनुष्य की आयु निश्चित करने का प्रयास किया गया है। स्वर-शास्त्र के साथ-साथ शरीर में होने वाली प्रक्रियाओं का भी वर्णन मिलता है। प्राणायाम के साथ अन्य विषय किस प्रकार सम्बन्धित हैं, इसका भी सुन्दर विवेचन आचार्य हेमचन्द्र ने दिया है। यह इस बात का द्योतक है कि उस समय की परम्परा में निश्चित ही सूक्ष्म अध्ययन करने की प्रवृत्ति रही होगी। आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति के इस युग में, अन्य अनेक प्राचीन विद्याओं की तरह, यह विषय भी संशोधन के लिए शास्त्रज्ञों की राह देख रहा है।
इस प्रकार संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि प्राणायाम की प्रक्रिया के साथ अनेक विषय गंथे हुए हैं और अप्रत्यक्ष रूप से यह भी स्पष्ट है कि साधना-मार्ग में साधना सम्बन्धी भेद महत्वपूर्ण नहीं हैं। सन्दर्भ और सन्दर्भ स्थल १ पतंजलि योगसूत्र २-४६ से ५२ तक २ प्राणापानौ समानश्च उदानोव्यान एव च ।
नाग: कूर्मश्च कृकरो देवदत्तो धनजयः ।।
उपयोगे विजातीय - प्रत्ययाव्यवधानमा । शुकप्रत्ययो ध्यानं, सूक्ष्यामोगसमन्वितम् ॥
. -द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका १८/११ स्थिर दीपक की लौ के समान मात्र शुभ-लक्ष्य में लीन और विरोधी लक्ष्य के व्यवधानरहित ज्ञान, जो सूक्ष्म विषयों के आलोचन सहित हो, उसे..। )( ध्यान कहते हैं।
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