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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : नवम खण्ड
आधुनिक शब्दावली में प्रस्तुत किया गया है ताकि लोग इसे भली-भांति समझ सकें। सर्वोपरि, यह योग को एक सामाजिक उद्देश्य प्राप्ति का साधन बनाना चाहती है किन्तु किसी संकीर्ण अर्थ में नहीं, वरन् समस्त मानवता के दिव्यकरण के व्यापक अर्थ में।
उनकी अपूर्व उपलब्धि यह है कि जिस समय अन्य लोग विश्व दृष्टियों और अभिवृत्तियों के बारे में सामान्य रूप में चर्चा करके ही सन्तुष्ट थे, उन्होंने एक सम्पूर्ण और व्यापक पद्धति का निर्माण किया। उन्होंने दर्शन के सभी परम्परागत प्रश्नों के उत्तर दिये हैं, उन्होंने 'क्यों' और 'कैसे' की, पाप और दुःख के अस्तित्व की, मानव ज्ञान के स्रोतों व प्रकारों की, मल्यों के स्वरूप की व्याख्या करने का प्रयास किया है। उनका ध्यान इस बात पर इतना नहीं है कि हमारा उत्तराधिकार क्या है अथवा कि आज हम क्या हैं बल्कि इस पर है कि हमें अभी क्या होता है ? यही कारण है कि वे अनन्त आशावाद का सन्देश देते हैं । पलायनवाद और निवृत्तिपरकता को आध्यात्मिक अभिनति का लक्षण स्वीकार नहीं करते ।
समकालीन युग में सभी प्रकार की संकीर्णताओं जो कि तथाकथित आध्यात्मिकता के नाम पर प्रचलित हैं, से ऊपर उठकर महायोगी श्री अरविन्द ने एक ऐसे विश्व-समाज का निर्माण करने हेतु अपनी साधना की जहाँ मानव एकता का आदर्श सभी प्रकार से साकार रूप ग्रहण कर सकेगा। एक ऐसा समाज जिसमें दिव्य चेतना का अवतरण होने के फलस्वरूप तनाव एवं वैमनस्य को जन्म देने वाली प्रवृत्तियों का सर्वथा लोप हो जायेगा और होगी एक अविचल अखण्ड शान्ति जिसमें जीवन की सार्थकता का अनुभव हो सकेगा।
राख्या करने का प्रयास पाप और दुःख का किया। उन्होंने दर्शन का
सन्दर्भ और सन्दर्भ स्थल . १ आर. आर. दिवाकर-महायोगी (अंग्रेजी), पृ० १६३
२ रामधारीसिंह दिनकर-संस्कृति के चार अध्याय, पृ० ६१६ ३ आर. आर. दिवाकर-'महायोगी' में उद्धृत, पृ० १२८-१२६ ४ जीन हर्बर्ट-पायनियर आफ सुप्रामेन्टल एज, पृ०६० ५ दिलीपकुमार राय-"तीर्थंकर"-आर. आर. दिवाकर कृत 'महायोगी' के पृ० १६५ पर उद्धृत । ६ श्री अरविन्द इवनिंग टाक्स-द्वितीय भाग, पृ० २२४ ७ आर. आर. दिवाकर-पूर्वोक्त, पृ० १३१ ८ शिवप्रसादसिंह-उत्तरयोगी, पृ० ३४२ ६ माधव पंडित-साधना इन श्री अरविन्दोज योग, पृ० ३१-३२ १० श्री अरविन्द-अपने तथा माताजी के विषय में पृ० ७५ ११ श्री अरविन्द लेटर्स, भाग २, पृ० ७ १२ सत्प्रेम-श्री अरविन्दो ऑर द एडवेंचर आफ कॉनशियसनैस पृ० ६३ १३ श्री अरविन्द-द लाइफ डिवाइन, पृ० १७७ १४ श्री अरविन्द द्वारा वारीन को ७ अप्रैल, १९२० को लिखा पत्र-शिवप्रसादसिंह कृत 'उत्तरयोगी' के पृ०२३५ पर
उद्धृत । १५ उपर्युक्त वही, पृ० २३५
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