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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
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मानवता का मसीहा
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D साध्वो चारित्रप्रभा शास्त्री
परम श्रद्ध य सद्गुरुवर्य का जीवन उस चमकते हुए दारी के साथ संयम की आराधना करनी चाहिए । बाँध कोहिनूर हीरे की तरह है जो प्रतिक्षण अपनी दिव्यता और में जरा-सी दरार भी और स्टीमर में नन्हा-सा छिद्र भी भव्यता से जन-जन को आकर्षित करता है। उनका सम्पूर्ण खतरनाक है। यदि उसकी उपेक्षा की जाय तो महान् जीवन सद्गुणों का आगार है। उनमें सरलता है, सरसता खतरा पैदा हो जायगा। वैसे साधक जीवन में दोषों के है, स्नेह और सद्भावना है, सरल मति है, सरल गति है, प्रति जागरूक न रहा गया तो वह दोष भयावह हो सरल आत्मा है, सरल व्यवहार है । उसमें किसी भी प्रकार जायगा । अतः एक क्षण का भी प्रमाद न कर, सावधान का दुराव और छिपाव नहीं।
रहो । जो सदा सावधान रहता है वह दोषों से बचा रहता अजमेर वर्षावास में मुझे भी आपश्री की सेवा का है। जैसे कारीगर भव्य प्रासाद का निर्माण करते समय अवसर मिला। मैंने देखा मूर्धन्य सन्त होते हुए भी किंचित् कितना जागरूक रहता है कि कहीं भी स्खलना न हो वैसे मात्र भी आपश्री में अभिमान नहीं । आगमों के महान् ही हमें भी जागरूक रहने की आवश्यकता है। ज्ञाता होते हुए भी घमण्ड नहीं। वस्तुतः विद्या; विनय से गुरुदेव श्री कभी किसी की निन्दा-विकथा नहीं करते। ही शोभा देती है।
यदि कोई उनके सामने किसी की निन्दा करता है तो आप ___मैं जब भी सेवा में गयी, कभी भी मैंने गुरुदेव श्री के उसे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि निन्दा यदि करनी है तो चेहरे पर म्लानता नहीं देखी। सदा मधुर मुसकान अपनी करो, दूसरों की नहीं । दूसरों की निन्दा करना पृष्ठअंगड़ाइयाँ लेती हुई दिखाई देती थीं। छोटों से भूल भी मांस खाने के समान है। तुम जिसकी निन्दा कर रहे हो हो जाती है, किन्तु उस भूल के परिष्कार हेतु आपने कभी उसमें कितनी अच्छाइयाँ हैं, कभी तुमने उस ओर भी ध्यान क्रोध नहीं किया, किन्तु स्नेह से समझाया और भविष्य में दिया है ? तुम दुर्गुणों के नहीं, सद्गुणों के ग्राहक बनो । भूल न हो उसके लिए सावधान किया । स्नेह और श्रीकृष्ण ने मरे हुए उस कुत्ते के, जिसके शरीर में कीड़े सद्भावना के साथ कही गयी बात का जो असर हृदय पर कुलबुला रहे थे, भयंकर दुर्गन्ध थी, वातावरण विषाक्त होता है वह असर क्रोध में कही हुई बात का नहीं होता। बना हुआ था, उस समय उन्होंने कुत्ते के चमकते-दमकते मैंने यह भी देखा कि कोई आपके प्रतिकूल विचारधारा दाँत देखे थे और उसी की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की थी। का व्यक्ति है, उसे भी आप दुत्कारते नहीं, किन्तु पुचकारते तुम्हें भी जिन व्यक्तियों में सद्गुण हैं, उन्हीं को देखने की हैं। और सहानुभूति के साथ उसकी बात को अच्छी तरह आदत डालनी चाहिए । गुरुदेव श्री की यह शिक्षा वस्तुतः से सुनते हैं। उसके पश्चात् उसके तर्कों का इस प्रकार कितनी महान है। यदि मानव इस शिक्षा को धारण कर खण्डन करते हैं कि उस व्यक्ति को अपनी भूल सहज ही ले तो जो समाज की विषम स्थिति चल रही है उसमें परिज्ञात हो जाय । और वह चरणों में गिर पड़ता है। अत्यधिक सुधार हो जाय ।
गुरुदेव श्री श्रमणचर्या के लिए सदा जागरूक हैं । वे सद्गुरुदेव श्री प्रखर व्याख्याता हैं। जब किसी भी स्वयं दृढ़ता के साथ संयम-साधना करते हैं। और दूसरों विषय पर आपश्री बोलते हैं तो उस विषय की अतल गहको भी यही प्रेरणा देते हैं कि संयम-साधना में शिथिलता राई में जाते हैं। आत्मा, कर्म, पुद्गल, ज्ञान, अनेकान्त, लाना भयावह है। तुम लोगों ने गृहस्थाश्रम का परित्याग जैसे गम्भीर विषयों पर भी आप इस सरसता से प्रकाश किया है । सांसारिक सुख-सुविधाओं को छोड़ा है तो ईमान- डालते हैं कि श्रोता आनन्द से झूमने लगता है । आपश्री की
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