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७२ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : नवम खण्ड
अतिरिक्त विभिन्न विश्वविद्यालयों में समय-समय पर योग और परामनोविज्ञान से सम्बन्धित विषयों को लेकर सेमीनार होते रहे हैं। अनेक भारतीय परामनोवैज्ञानिक अमरीका में ड्यूक विश्वविद्यालय में डा. जे. बी. राइन की परामनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। ये सभी अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी अनेक विश्वविद्यालयों में परामनोवैज्ञानिक अनुसन्धान को आर्थिक सहायता दी है। उपर्युक्त समस्त गतिविधि से यह आशा की जा सकती है कि भविष्य में भारतीय मनोवैज्ञानिक परामनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे सकेंगे।
योग और परामनोविज्ञान के सम्बन्ध के विषय में महत्त्वपूर्ण अनुसन्धान में सबसे बड़ी बाधा यह है कि भारत में अभी योगियों और परामनोवैज्ञानिकों में प्रत्यक्ष रूप से कोई सम्पर्क तथा सहयोग नहीं है। इस क्षेत्र में केवल पुस्तकीय अध्ययन पर्याप्त नहीं है । आशा है कि भविष्य में परामनोवैज्ञानिक योगियों का सहयोग प्राप्त करके इस क्षेत्र में स्थायी महत्व के अनुसन्धान कर सकेंगे ।
सन्दर्भ और सन्दर्भ स्थल
1 "If you expect to continue with this most interesting approach, I am sure that many of us, including myself, will hope that by those methods you will be able to make a real breakthrough in knowledge." -Gertrude Schmeidler.
2 "It is very interesting to see many distinguished parapsychologists and philosophers of P.S.I. reflecting on the possible relationship of Yoga to Parapsychology. If there is any truth in the age old belief that Yoga training and practice lead one to paranormal abilities, it is time that something should be done about it. This publication is welcome in that it focuses its attention on that important problem."
-The Journal of Parapsychology, Vol. 28, No. 2-June 1964, p. 142.
३ योगसूत्र, ४, १ । ४ योगसूत्र, २, ३२ ।
५ योगसूत्र ३, २५ ।
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असंयतात्मना योगो, दुष्प्राप्य इति मे मतिः । वश्यात्मना तु यतता, शक्योऽवाप्तुमुपायतः ॥
मन को वश में न करने वाले पुरुष को योग की प्राप्ति होना बहुत कठिन
है । उपाय से आत्मा को वश में करने वाला योग को प्राप्त हो सकता है ।
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