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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
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एक महामहिम व्यक्तित्त्व
। साध्वी श्री किरणप्रभा
'संताच्या विभूति जगाच्या कल्याणी' महाराष्ट्र संत लिए ही सुखदायक होता है, शरीर पोषक होता है, लेकिन रामदास के मुखारविन्द से निसृत शब्द कितने यथार्थ हैं, आध्यात्मिक जगत में सन्तरूपी उपवन आत्मपोषक होते संतों का जीवन विश्व-कल्याण के लिए समर्पित होता है। हैं, अद्भुत आनन्द को प्रदान करने वाले होते हैं। अपनी उनके श्वास-श्वास में विश्वकल्याण की भावना समाहित सद्गुण सौरभ से भक्त भ्रमरों को अपनी ओर आकर्षित होती है। भारतीय संस्कृति में सन्तों का सर्वोपरि स्थान करते हैं एवं अन्तर-बाह्य पीड़ा से आकुल-व्याकुल संतप्त है। विश्वोत्थान के लिए सन्तों का योगदान अविस्मरणीय जनमानस को शांत करने में समर्थ होते हैं। अपने ज्ञान है। हिमालय से कन्याकुमारी और कच्छ से बंगाल की के रसपूर्ण सुमधुर फलों से आध्यात्मिक क्षुधा शमन करते खाड़ी तक सत्यं, शिवं, सुन्दरम् का जो अनाहत संगीत हैं। अपनी सद्कृपा की सुशीतल छाया से संतप्त मानव युगों से मुखरित हो रहा है, उसमें सन्तों की आत्मा ध्वनित मन के मनस्ताप को हरण करने में समर्थ होते हैं। ऐसे हो रही है, यदि हम इतिहास को अविच्छिन्न संत-परम्परा अनेक संतरूपी उपवनों में एक विराट व्यक्तित्व लिए हुए की समुज्वल गाथा कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं जिनका स्थानकवासी सन्त समाज में विशिष्ट उच्च एवं होगी।
परमादरणीय स्थान है। जो उपाध्याय के महत्त्वपूर्ण पद मैं अपने जीवन को धन्य एवं सफल समझ रही हैं कि को शानदार ढंग से सुशोभित करते हैं ऐसे महकते हुए रत्नत्रय की साधना से सुशोभित श्रद्ध य परमपूज्य उपा- सन्त उपवन हैं, जिनका शुभ नाम है श्री पुष्कर मुनिजी ध्याय श्री पुष्करमुनि जी महाराज के जीवन के सम्बन्ध में महाराज । मुझे दो शब्द लिखने का अवसर मिला है, लेकिन मेरे मन आपके मंगलमय पुनीत पावन प्रथम दर्शन का लाभ में एक प्रश्न तरंगित होता है कि इन महान् विभूति के अहमदनगर की पावन धरा में हुआ सन् १९६६ में । प्रथम लिए मैं क्या लिखू ? सन्त पुरुषों के विषय में लिखना सच- दर्शन में ही आपके सरलता एवं उदारतापूर्ण सुमधुर व्यवमुच दुष्कर कार्य है क्योंकि उनका विशिष्ट व्यक्तित्व हार से अन्तःकरण आनन्द से आप्लावित हो गया । हिमालय जैसा महान होता है और कुशलकर्तृत्व अनन्त आत्मीयता की अमृतमय अनुभूति से मन का कण-कण सागर की तरह विराट होता है । उनके विराट व्यक्तित्व आनन्द सागर में डुबकियां लेने लगा। कोई संकोच नहीं, एवं कृतित्व को शब्दों की सीमा में आबद्ध करना मेरे कोई परत्व नहीं, कोई सजावट नहीं, कोई बनावट नहीं लेखनी के वश की बात नहीं । महापुरुषों के अनन्त सद्गुण ऐसा प्रतीत हुआ मानों हम वर्षों से आपके कृपापात्र है। सुमनों को अल्प शब्द सूत्र में गुंफन करना पूर्णतः असंभव आपकी प्रकृति एवं आपका स्वभाव मधुर है, सरस है, परम
सरल है और प्रभावोत्पादक है यही कारण है कि आपने विश्व के प्रांगण में खिले हुए उपवन का भी एक अपने शिष्य-शिष्याओं के अतिरिक्त अन्य सन्तसतियों के महत्त्वपूर्ण स्थान है, वह मनोहारी उपवन अपने सुकोमल हृदय में भी अपना स्थान स्थित कर लिया है। सुमनों की सौरभ से भ्रमरगणों को अपनी ओर आकर्षित जैन जगत के सजग प्रहरी, महावीर वाणी के सन्देश करता है, एवं क्षुब्ध मानव मन को क्षण के लिए प्रफुल्लित वाहक, सत्य धर्म के प्रभावक, राजस्थानकेसरी, उपाध्याय बना देता है, रसपूर्ण मीठे मधुर फलों से मानव की क्षुधा जी महाराज एक महान् एवं विश्रुत सन्त हैं। आपका शमन करता है, एवं सुशीतल छाया में प्रचण्ड आतप को व्यक्तित्व बहुत व्यापक है। आपके विचार बहुत उदार हैं दूर करने में सक्षम होता है। प्रस्तुत उपवन मात्र देह के और चिंतन गहन गम्भीर है।
करता है, एवं संपूर्ण मीठे मधुर फलों में प्रचण्ड आतमहक और
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