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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
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ते गुरु मेरे उर बसो
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- महासती श्री कौशल्याकुमारी
भारतीय संस्कृति का तलस्पर्शी अनुशीलन करने पर श्रद्धय सदगुरुवर्य समाज सेवा के कर्म क्षेत्र में, आध्या सहज ही परिज्ञात होता है कि विश्व के मंच पर मानव- त्मिक उत्क्रान्ति के बीज बोने में और समूची मानव जाति जीवन सबसे अधिक श्रेष्ठ और ज्येष्ठ है। उसकी श्रेष्ठता के आध्यात्मिक जागरण में उनका अनूठा योगदान रहा और ज्येष्ठता का आधार संयम-साधना, त्याग-तप की है। मेरे अनघड़ जीवन निर्माण का श्रेय भी श्रद्धय सद्आराधना है। जीवन में जितनी अधिक वैराग्य की भावना गुरुदेव को है। श्रद्धय सदगुरुवर्य के उपदेश से ही मैंने सद् प्रबल होगी, त्याग की अधिकता होगी, साधना की गुरुणीजी श्री सज्जनकुंवर जी महाराज के पास दीक्षा निर्मलता होगी, उतना ही जीवन सच्चा और अच्छा माना ली, आपश्री के निर्देशन से ही मैंने अध्ययन की दिशा में जायेगा।
कदम बढ़ाया। जब भी मेरे जीवन में उफान और तूफान अविवेकी मिथ्यादृष्टि जीव का लक्ष्य होता है लोक- आया, तब मैंने सदगुरुवर्य के पुनीत नाम का स्मरण किया वणा, पुत्रैषणा और वित्तषणा किन्तु सम्यग्दृष्टि विवेकी मुझे आश्चर्य है कि उनके नाम के दाक्षिणात्य पवन ने साधक के जीवन का लक्ष्य होता है आत्म-गवेषणा, सदगुणों उफान और तूफान को शान्त कर दिया । वस्तुतः आपश्री की अन्वेषणा और उसी के लिए वह अहर्निश प्रयास करता के नाम में ही जादू है। जब भी मैं आपश्री के नाम का है। परमश्रद्धय सद्गुरुवर्य संयम, साधना, तप और त्याग पुनीत स्मरण करती हूँ तब मुझे अपार शान्ति मिलती है। की आराधना के महापथ पर एक सफल साधक की तरह आपश्री ने समय-समय पर मुझे शायर के शब्दों में यह निरन्तर बढ़ते रहे हैं। लघुवय में संयम-साधना के कठिन प्रेरणा दी है कि जिन्दगी हर मोड़ पर यह आवाज दे रही अग्निपथ को अपनाकर निरन्तर उस पर अपने मुस्तैदी है कि अय मानवो ! भविष्य की चिन्ता त्याग कर भविष्य कदम बढ़ाना उनकी महानता का पुनीत प्रतीक है । संयम के निर्माण में संलग्न हो जाओ यही तुम्हारी मौजूदगी का के प्रशस्त-पथ पर बढ़कर वे वहीं पर अवस्थित नहीं हुए संसार में एक निशान रहेगा। अपितु जीवन को निखारने के लिए, वैराग्य भाव में अधिकाधिक वृद्धि करने के लिए उन्होंने ज्ञान का गहरा अभ्यास जिन्दगी हर मोड पर मुझको यह देती है सदा । किया, त्याग और तप के रंग में अपने जीवन को रंगा, फिक-फर्दा छोड़िये तामीरे-फर्दा कीजिए। साधना के दिव्य सम्बल लेकर इठलाती हई तरुणाई में भी निरन्तर आगे बढ़ते रहे, पीछे मुड़कर नहीं देखा । जीवन श्रद्धय सदगुरुवर्य के श्री चरणों में मैं अनन्त श्रद्धा के की प्रगति का यही मूल मन्त्र है
सुरभित सुमन समर्पित करती हैं जिसने अपने ज्ञान के
प्रकाश से जीवन और जगत् को ज्योतिर्मय बनाया है। न पीछे हटाया कदम को बढ़ाकर,
उनके आचार में पवित्रता और विचारों में उच्चता है ऐसे अगर बम लिया तो मंजिल पे जाकर। सदगरुदेव सदा मेरे उर में बसें।
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