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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : अष्टम खण्ड
१३.
१४. आचा
१७.
आर्य सुहस्ती के पश्चात भी कुछ आचार्य गणाचार्य और वाचनाचार्य दोनों हुए हैं । जो आचार्य प्रबल प्रतिभा के धनी थे उन्हें युगप्रधान माना गया है, वे गणाचार्य और वाचनाचार्य दोनों में से हुए हैं ।
हिमवन्त स्थविरावलि की दृष्टि से वाचकवंश या विद्याधरवंश की परम्परा इस प्रकार है१. आचार्य सुहस्ती। २. आचार्य बहुल और बलिस्सह । ३. आचार्य उमास्वाति । ४. आचार्य अमम ।
आचार्य सांडिल्य या स्कंदिल (वि० सं० ३७६ से ४१४ तक युग-प्रधान)। ६. आचार्य समुद्र। ७. आचार्य मंगूसूरि । ८. आचार्य नन्दिलसूरि ।
आचार्य नागहस्तीसूरि । १०. आचार्य खेति नक्षत्र ।
आचार्य सिंहसूरि आचार्य स्कंदिल (वि० सं० ८२६ वाचनाचार्य)। आचार्य हिमवन्त क्षमाश्रमण ।
आचार्य नागार्जुनसूरि । १५. आचार्य भूतदिन्न। १६. आचार्य लौहित्यसूरि ।
आचार्य दुष्यगणी। १८. आचार्य देववाचक (देवर्धिगणी क्षमाश्रमण)। १६. आचार्य कालिकाचार्य (चतुर्थ) । २०. आचार्य सत्यमित्र (अन्तिम पूर्वविद्) ।
दुस्सम-काल-समण-संघत्थव और विचार-श्रेणी के अनुसार 'युग-प्रधान-पट्टावलि' और समयआचार्यों के नाम
समय (वीर-निर्वाण से) १. गणधर सुधर्मास्वामी
१-२० २. आचार्य जम्बूस्वामी
२०-६४ ३. आचार्य प्रभवस्वामी
६४-७५ ४. आचार्य शय्यंभवसरि
७५-६८ आचार्य यशोभद्रसूरि
१८-१४८ ६. आचार्य संभूतिविजय
१४८-१५६ आचार्य भद्रबाहुस्वामी
१५६-१७० ८. आचार्य स्थूलभद्र
१७०-२१५ आचार्य महागिरि
२१५-२४५ १०. आचार्य सुहस्तीगिरि
२४५-२६१ ११. आचार्य गुणसुन्दरसूरि
२९१-३३५ १२. आचार्य श्यामाचार्य
३३५-३७६ १३. आचार्य स्कंदिल ।
३७६-४१४ १४. आचार्य रेवतिमित्र
४१४-४५० १५. आचार्य धर्मसूरि
४५०-४६५ १६. आचार्य भद्रगुप्तसूरि
४६५-५३३ १७. आचार्य श्रीगुप्तगिरि
५३३-५४८
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