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________________ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन २६ . + + + ++ ++ ++ ++ ++++++++ ++ ++++ ++ + + ++ + +++ + + ++++++ + ++ + + ++ + ++ + ++ ++ + + ++ ++++ ++++ 4 + ++ ++++ ++++ + + + ++++++ ++ प्रकार समर्पित जीवन ही जीवन की महानता का बोध कर कराने के लिए पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री ने तथा उनके सकता है। सुशिष्य श्री गणेशमुनि जी महाराज साहब को कितना विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने लिखा है- श्रम और कष्ट उठाना पड़ा होगा । पूज्य गुरुदेव की सतत"स्वयं अपने को लेकर मैं तो प्रतिदिन यही अनुभव करता सेवा तथा अध्ययन-मनन की महती प्रेरणा से ही मेरे हूँ कि मेरे भीतर और बाहरी जीवन के निर्माण में कितने जीवन तन्तुओं का निर्माण हुआ है । एक अनघड़ पत्थर को अगणित व्यक्तियों के श्रम और कृपा का हाथ रहा है और कुशल शिल्पियों ने तराश कर रत्न जैसा बना दिया है। इस अनुभूति से उद्दीप्त मेरा अन्तःकरण कितना छट- महान जीवन के स्रष्टा एवं कलाकार, गुरुदेव श्री पटाता है कि मैं कम से कम इतना तो इस दुनिया को दे का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। पूज्य गुरुदेव श्री के सर्वं जितना कि मैंने उससे अभी तक लिया है।" मुझे तो स्वस्थ एवं दीर्घायु-की मंगल कामना करता हूँ और आशा कभी-कभी बड़ा आश्चर्य लगता है कि मुझे जैसे निरक्षर करता हूँ कि उस तपःपूत मनस्वी की साधना का प्रकाश तथा अबोध बालक को ज्ञान की ज्योति-धारा में अवगाहन हमें निरन्तर प्रगति-पथ पर चलने की प्रेरणा देगा। श्रमणसंघ के मूर्धन्य सन्त 0 श्री कुन्दन ऋषिजी महाराज अतीत के स्मृति अत्यन्त मधुर होती है और फिर यदि कर दिया। सभी लोग आपश्री की प्रकृष्ट प्रतिभा को वह महापुरुषों की स्मृति हो तो कहना ही क्या ? बात ई० देखकर विस्मित थे । सन् १९६४ की है आचार्य सम्राट परमश्रद्धेय श्री आनन्द । श्रमणसंघ की उस समय अनेक समस्याएँ उलझी हुई ऋषिजी महाराज साहब के नेतृत्व में शिखर सम्मेलन का थीं, उन समस्याओं को सुलझाने के लिए पूज्य गुरुदेव श्री आयोजन अजरामरपुरी अजमेर में होने जा रहा था, उस को आपके मधुर सहयोग की आवश्यकता थी अत: आपश्री समय आचार्य श्री आचार्य नहीं, अपितु उपाध्याय थे और पूज्य गुरुदेव के साथ ही वहाँ से विजयनगर, ब्यावर और श्रमणसंघ के प्रमुख कार्य संचालक थे । सम्मेलन में अजमेर एक साथ रहे । जो समस्याओं के पहाड़ दुर्लघनीय सम्मिलित होने हेतु पूज्य गुरुदेवश्री बम्बई से विहार कर प्रतीत हो रहे थे, वे सहज रूप से सुलझा दिये गये, और राजस्थान पधारें। पूज्य गुरुदेव श्री के दर्शनार्थ और उनसे अजमेर में सम्मेलन में भी स्नेहपूर्ण सरस वातावरण निर्माण श्रमणसंघ के सम्बन्ध में विचार-विर्मश करने हेतु अध्या- करने में आपने जो भूमिका अदा की, उसे मैं विस्मृत नहीं त्मयोगी राजस्थानकेसरी पुष्करमुनिजी महाराज गुलाब हो सकता। और आपके विशेष प्रयास से आचार्य पद पुरा पधारें। पूज्य गुरुदेव श्री भी भीलवाड़ा से विहार कर प्रदान करने का समारोह उल्लासपूर्ण क्षणों में सम्पन्न गुलाबपुरा पधारें। राजस्थानकेसरी जी महाराज अपने हुआ। शिष्य समुदाय के साथ गुरुदेव श्री के स्वागतार्थ सामने मुझे यह देखकर अत्यन्त आल्हाद हुआ कि आप जैसे पधारें। आपके प्रवाहपूर्ण ओजस्वी व्यक्तित्व को देखकर विलक्षण प्रतिभा के धनी महापुरुष भी बालकों के साथ मैंने दूर से ही अनुमान लगाया कि आप ही राजस्थान स्नेहपूर्ण ढंग से पेश आते हैं। उस समय मुझे दीक्षा लिए केसरी जी महाराज होने चाहिए। वन्दन व्यवहार होने के हुए सिर्फ दो ही वर्ष हुए थे। आपने मुझे अध्ययन की पश्चात् पूज्य गुरुदेवश्री से एकान्त-शान्त स्थान पर बैठ प्रबल प्रेरणा प्रदान की, आचार्य प्रवर तथा अन्य गुरुजनों की कर आपश्री ने वार्तालाप किया, मुझे देखकर आश्चर्य आज्ञा का पालन करना जीवन विकास के लिए आवश्यक हुआ कि जो समस्यायें उलझी हुई थीं, जिन समस्याओं के है, इस बात पर भी प्रकाश डाला। समाधान हेतु पूज्य गुरुदेवश्री लम्बे समय से चिन्तन कर उसके पश्चात् सन् १९७१ में राजस्थानी मुनियों का रहे थे, उन समस्याओं को आपश्री ने कुछ ही क्षणों में प्रान्तीय सम्मेलन सांडेराव में आयोजित हुआ। उस सुलझा दी, और एक उल्लासमय वातावरण का निर्माण सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए राजस्थानकेसरीजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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