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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
दिशाएँ प्राप्त होती रही हैं और जिस दिशा में आपके कदम अग्रसर होते हैं वहीं सिद्धि आपका मन मोहक स्वागत करती है। आज आपकी साधना अनुपम सिद्धि के महाशिवर पर आरूढ़ हो चुकी है। आपके श्री चरणों के सम्पर्क में जो भी जिज्ञासु पहुँच जाता है उसकी शंकाओं का सम्यक् समाधान तत्काल हो जाता है, और अपने समस्त कष्टों से वह मुक्ति पा लेता है। आज आपकी आध्यात्मिक साधना का सूर्य दिग्दिगन्त तक अपनी प्रखर रश्मियाँ विकीर्ण कर रहा है।
कृतं मे दक्षिण हस्ते जयो मे सव्य आहितः अर्थात् दाहिने हाथ में मैं अपना पुरुषार्थ लिये हूँ, बायें में सफलता, पूज्य गुरुदेव श्री के जीवन के अणु-अणु में पुरुषार्थं की आभा प्रभासित है। यही कारण है कि वृद्धावस्था में भी आप में नवयुवकों-सा उत्साह उमंग एवं जोश लहराता रहता है। जन-जन को आप अप्रमत्तता का सन्देश देते हैं ।
आपश्री का जीवन सादगी, सरलता एवं विनम्रता का पावन संगम है । सहिष्णुता और करुणा के स्वर आप की भाव- वीणा से निरन्तर ध्वनित होते रहते हैं। साधना की अद्भुत उपलब्धि ने भी आपके मानस को कहीं से भी अहंकार की कल्मष नहीं लगने दिया है। आपका समस्त जीवन गुणों का गुलदस्ता है, जिसकी सुगन्ध सुदूर प्रान्तों तक सुवासित है आज आपके दिव्य गुर्गों की कीर्तिगाथा गाने के लिये लक्ष लक्ष कण्ठ उत्कण्ठित हो रहे हैं । आत्मश्लाघा एवं आत्म-स्तुति से सर्वथा मुक्त रहकर आप निरन्तर साधना के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करते जा रहे हैं । आपने कवि रहीम के इन शब्दों को जीवन में चरितार्थ कर लिया है
बड़े बड़ाई ना करें, बड़े न बोलें बोल । रहिमन होरा कब कहे, लाख टका मेरो मोल ।।
जीवन एक प्रयोगशाला की भाँति होता है जिसमें सुख-दुःख, उत्थान-पतन, हर्ष-विषाद सागर के ज्वार - माटे की तरह आते-जाते रहते हैं पूज्य गुरुदेव ने अपने जीवन में अनेकों बार अमृत के स्थान पर गरल का पान किया है, एवं फूलों के स्थान पर शूलों का वरण किया है। कष्ट एवं विपत्ति के क्षणों में भी आपके मुख मण्डल पर म्लान छाया का यत्किञ्चित आभास नहीं होता और घोर मुसीबत के अवसरों पर भी आप प्रमुदित गुलाब की भाँति मुस्कराते रहते हैं । संकट की घड़ियों में भी आप धैर्य नहीं खोते और अपने साहस से दूसरों को भी प्रेरणा प्रदान करते हैं। भगवान महावीर की इस उक्ति को आपने जीवन में उतार लिया है-
अप्पणामेव अप्पाणं जइत्ता सुहमेहए
-आत्मा को आत्मा के द्वारा जीत कर ही मनुष्य सच्चा सुख एवं शान्ति प्राप्त कर सकता है।
अध्यात्म, योग तथा साधना के क्षेत्र में आप श्री ने जो सिद्धि अर्जित की है वह नमस्कार महामन्त्र के प्रति आपकी अटूट श्रद्धा का सुपरिणाम है। वस्तुतः श्रद्धा के आलोक में जो सत्य उपलब्ध होता है वह बुद्धि तथा तर्कवितर्क के धरातल पर उपलब्ध शुष्क ज्ञान से कहीं महतर होता है।
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आज जब मैं पूज्य गुरूदेव से अपने प्रथम-साक्षात्कार स्मरण करता हूँ तो मेरी चेतना उस क्षण के आन्तउल्लास को व्यक्त करने में स्वयं को असमर्थ पाती है। किसी महती प्रेरणा से प्रेरित होकर मैंने वि० सं० २०१९ के वर्षावास के उत्तरार्द्ध में जोधपुर में आप श्री के प्रथम दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया था। मैं समझता हू कि वह मेरे जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षण था जिसमें मैंने एक वैराव्यमूर्ति और तपःपूत व्यक्तित्व का सम्पर्क पाया था। मैं एक अकिंचन तथा माया-मोह जनित निविड़ अन्धकार से ग्रस्त और संकुचित था और आप उस प्रकाश पुंज की भाँति थे जो अमावस्या के घोर तम को भी चुनौती देकर आकाश मण्डल को अपनी ज्योति से प्रकाशित कर देता है। वैराग्य की दिव्य आलोककिरण से मेरे मन का घनीभूत अन्धकार अचानक पिघल उठा और मेरे मानस पटल पर चाणक्य का कथन रेखाकित हो उठा
शैले शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे गजे । साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न बने बने || अर्थात् " प्रत्येक पर्वत पर माणिक्य नहीं होता और प्रत्येक हाथी में मुक्ता नहीं मिलती, सर्वत्र साधु नहीं मिलते और सब वनों में चन्दन नहीं होता।" सचमुच सच्चे साधु के दर्शन अलभ्य हैं और सज्जनों की संगति का सौभाग्य भी सब को कहाँ प्राप्त होता है ? उस दिन पूज्य गुरुदेव के महिमा - मण्डित व्यक्तित्व में मुझे दिव्य आकर्षण की अनुभूति हुई और मेरे मन ने निश्चय कर लिया कि मुझे भी सांसारिक आसक्ति से विरक्त होकर साधना-पथ पर अग्रसर होना और जीवन का लक्ष्य बदलना है।
मैंने अपना सर्वस्व गुरुचरणों में समर्पित कर दिया । समर्पण में अनुपम शक्ति होती है, हार्दिक उल्लास होता है, मन के किसी कोने में यह सन्तोष होता है कि मैंने विराट सत्ता को अंगीकार कर लिया है। जिस प्रकार जल का एक बिन्दु समर्पण सीखकर सागर की महानता का अनुभव कर लेता है, विद्यत् को समर्पित तार प्रकाश का स्रोत बन जाता है और मिट्टी को समर्पित होकर बीज ही फूल बन कर पराव को चतुर्दिक विसेर देता है, उसी
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