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४४.
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड
दसवेपालिय
हरिवंशपुराण एवं
महापुराण
सूर्यप्रज्ञप्ति जम्बूदीपप्रज्ञप्ति
प्राकृत कल्पतरु
न्यायावतारसूत्र
महानिशीथ
मल्ली की कथा
चौपन्न महापुरिसचरियं
महानिशीथ
आयारदशाओ
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४६.
५०.
विभिन्न विषय
प्रवचनसार
उत्तराध्ययन
ओ नियुकि
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मुलाबार
भगवती मूलाराधना अनुयोगद्वारसून
लेमन
आसडोर्फ
कोल
किफेल
डब्लू
नित्ति डोलची
कनकुरा
हम्म
गुस्तेव
कलास
शुब्रिग
शुगि
ए. ऊनो
आल्सडोर्फ
ए. मेटे आल्सडोर्फ आल्स डोर्फ टी० हनाकी
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१६३२
१६३५
१६३७
१६३७
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१६३६
१९४४
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जैन साहित्य के इन प्रमुख ग्रन्थों के अतिरिक्त जैन दर्शन की अन्य विधाओं पर पाश्चात्य विद्वानों ने लिखा है । उन्होंने जैन ग्रन्थों का सम्पादन ही नहीं किया, अपितु उनके फ्रेंच एवं जर्मन भाषाओं में अनुवाद भी किये हैं । लायमन ने पादलिप्तसूरि की तरंगवती कथा का सुन्दर अनुवाद दाइनोन ( Die Nonne - The Nun) के नाम से प्रकाशित किया है। इस दृष्टि से चाट फोसे का इंडियन नावेल (Indisch Novellen) महत्त्वपूर्ण कार्य है।" जैनाचायों की जीवनी - साहित्य की दृष्टि से हर्मन जैकोबी का 'अवर डास लेवन डेस जैन मोन्स हेमचन्द्र' नामक ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण है ।
जैन इतिहास और पुरातत्त्व के महत्त्वपूर्ण अवशेषों के सम्बन्ध में भी पाश्चात्य विद्वानों ने अध्ययन प्रस्तुत किया है। डी० मेनट ने गिरनार के जैन मन्दिरों पर लिखा है। जोरलडुबरल ने दक्षिण भारत के पुरातत्त्व पर विचार करते हुए जैन पुरातत्त्व ' के महत्त्व पर प्रकाश डाला है । ए० ग्यूरिनट ने जैन अभिलेखों के ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डाला है ।" ग्यूरिनट का विशेष योगदान जैन ग्रन्थ सूची के निर्माण करने में भी है। उन्होंने ८५२ जैन ग्रन्थ का परिचय अपने 'एसे आन जैन बिब्लियोग्राफी' नामक निबन्ध में दिया है। इसके बाद 'नोटस आन जैन बिब्लियोग्राफी' तथा 'सम कलेक्शन्स आफ जैन बुक्स' जैसे निबन्ध भी उन्होंने जैन ग्रन्थ सूची के निर्माण के सम्बन्ध में लिखे हैं । २ इनके पूर्व भी १८६७ ई० में अर्नेस्ट ल्यूमन ने २०० हस्तलिखित दिगम्बर जैन ग्रन्थों का परिचय अपने एक लेख में दिया है।"
जैन साहित्य के ग्रन्थों का अध्ययन करने वाले पाश्चात्य विद्वानों में विन्तरनित्स का स्थान उल्लेखनीय है । उन्होंने अपने 'हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ में लगभग १५० पृष्ठों में जैन साहित्य का विवरण दिया है । उस समय उन्हें उतने ही जैन ग्रन्थ उपलब्ध थे । इस विवरण में विन्टरनित्स ने जैन कथाओं का भारत की अन्य कथाओं एवं विदेशी कथाओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है ।
विदेशों में जनविद्या के अध्ययन केन्द्र
लगभग दो सौ वर्षों तक पाश्चात्य विद्वानों द्वारा जैन विद्या पर किया गया अध्ययन भारत एवं विदेशों में जैनविद्या के प्रचार-प्रसार में पर्याप्त उपयोगी रहा है। इन विद्वानों के कार्यों एवं लगन को देखकर भारतीय विद्वान् भी जैन विद्या के अध्ययन में जुटे। परिणामस्वरूप न केवल प्राकृत अपभ्रंश साहित्य के सैकड़ों ग्रन्थ प्रकाश में आये, अपितु भारतीय विद्या के अध्ययन के लिए जैनविद्या के अध्ययन की अनिवार्यता अब अनुभव की जाने लगी है । डा० पी० एल० वैद्या, डा० एच० डी० बेलणकर, डा० एच० एल० जैन, डा० ए० एन० उपाध्ये, डा० जी० बी० सगारे, मुनिपुण्य
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