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पाश्चात्य विद्वानों का जैनविद्या को योगवान
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लेंग्वेज इन सरह दोहा' नामक निबन्ध प्रकाशित किया, १९६४ ई० में 'ए स्टडी आफ अवहट्ट एण्ड प्रोटोबेंगाली' विषय पर कलकत्ता विश्वविद्यालय से आपका शोध-प्रबन्ध स्वीकृत हुआ। इसके बाद भी अपभ्रंश पर आपका अध्ययन गतिशील रहा। १६६५ ई० में अपभ्रश एण्ड अवहट्ट-प्रोटो न्यू इंडो-आर्यन स्टेजेज" नामक निबन्ध आपके द्वारा प्रस्तुत किया गया।
जैन साहित्य ... पाश्चात्य विद्वानों ने केवल प्राकृत एवं अपभ्रश का भाषावैज्ञानिक अध्ययन ही नहीं किया अपितु इन भाषाओं के साहित्य का भी अध्ययन किया है। जैनागम, जैनटीका-साहित्य तथा स्वतन्त्र-साहित्यिक रचनाओं के प्रामाणिक संस्करण जर्मन और फ्रेंच विद्वानों द्वारा तैयार किये गये हैं। जैन कथा साहित्य पर उनकी विशेष रुचि रही है। व्याकरण एवं भाषाशास्त्रीय ग्रन्थों के अतिरिक्त १६वीं शताब्दी से अब तक जैन साहित्य के जिन प्रमुख ग्रन्थों पर पाश्चात्य विद्वानों ने कार्य किया है, उनका विवरण-कालक्रम की दृष्टि से इस प्रकार है१. अभिधानचिन्तामणि
ओ० बोतलिक
१८४८ ई. शत्रुजयमहात्म्य
अल्वर्ट वेबर
१८५८ भगवतीसूत्र
जैकोबी
१८६८ कल्पसूत्र
जैकोबी
१८७६ देशीनाममाला
पिशल
१८८० नायाधम्मकहा
स्टेनल
१८८१ औपपातिकसूत्र एवं रायपसेणिय
लायमन
१८५२ आचारांग
जैकोबी
१८८५ उत्तराध्ययनटीका
जैकोबी
१८८६ हेमचन्द्र लिंगानुशासन एफ० आर० ओटो
१८८६ १२. कथासंग्रह
जैकोबी
१८८६ १३. सगरकथा का जैन रूप
१८८६ उपमितिभवप्रपंचकथा
जैकोबी
१८६१ महावीर एवं बुद्ध एस०एफ० ओटो
१६०२ धर्मपरीक्षा मिरनोव निकालेस
१९०३ कल्पसूत्र
शुकिंग
१९०४ जैनग्रन्यसंग्रह
म्यूरेनिट
१९०६ ज्ञाताधर्मकथा
हट्टमन
१९०७ अंतगडदसाओ
बरनट
१९०७ वज्जालग्ग
जलस
१६१३ पउमचरियं
जैकोबी
१६१४ कर्मग्रन्थ
ग्लसनप
१६१५ भविसयत्तकहा
जैकोबी
१६१८ प्रबन्धचिन्तामणि
सिवेल
१९२० कालकाचार्य कथानक
जैकोबी
१६२१ नेमिनाथचरित
जैकोबी
१६२१ २८. सनत्कुमारचरित
जैकोबी
१६२१ २६. तत्वार्थाधिगमसूत्र एवं कल्पसूत्र .
. सुजुकी
१६२१ उत्तराध्ययनसूत्र
कारपेण्टर
१९२२ दिगम्बर जैन ग्रन्थों का परिचय
वाल्टर
१९२३ कुमारपालप्रतिबोध
आल्सडोर्फ
१६२८
फिक
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