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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड
प्रज्ञापना, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति इन पांच सूत्रों के अतिरिक्त शेष स्थानकवासी सम्मत २७ आगमों के बालावबोध (टव्वे) लिखे हैं । साधु रत्नसूरि के शिष्य पार्श्वचन्द्रगणी (वि० सं० १५७२) विरचित आचारांग, सूत्रकृतांग आदि के बालावबोध भी उल्लेखनीय हैं । इनकी भाषा गुजराती है। .. प्रसिद्ध बालावबोधकार मुनिश्री धर्मसिंहजी जामनगर (सौराष्ट्र) के निवासी थे। पिताश्री का नाम जिनदास और माता का नाम शिवादेवी था। आप करीब १५ वर्ष के थे उस समय लोंकागच्छ के आचार्य रत्नसिंह के शिष्य देवजी मुनि का जामनगर पदार्पण हुआ। उनके प्रवचन से प्रभावित होकर आपने व आपके पिताजी ने दीक्षा अंगीकार कर ली थी। अध्ययन करते-करते आपको शास्त्रों का अच्छा अभ्यास हो गया था। आपके बारे में यह प्रसिद्ध है कि दोनों हाथों से ही नहीं दोनों पैरों से भी लेखनी पकड़कर लिख सकते थे। वि० सं० १७२८ आश्विन शुक्ला ४ को आप कालधर्म को प्राप्त हुए।
मुनिश्री धर्मसिंहजी ने २७ सूत्रों के टव्वों के अतिरिक्त निम्नलिखित गुजराती ग्रन्थों की भी रचना की है :-समवायांग की हुण्डी, सूत्रसमाधि की हुण्डी, भगवती का यन्त्र, स्थानांग का यन्त्र, जीवाभिगम का यन्त्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का यन्त्र, चन्द्रप्रज्ञप्ति का यन्त्र, सूर्यप्रज्ञप्ति का यन्त्र, राजप्रश्नीय का यन्त्र, व्यवहार की हुण्डी, द्रौपदी की चर्चा, सामायिक की चर्चा, साधु सामाचारी, चन्द्रप्रज्ञप्ति की टीप । कुछ ग्रन्थ और भी लिखे हैं लेकिन अभी तक इन ग्रन्थों का प्रकाशन नहीं हुआ है।
आजकल हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं में अनेक आगमों के अनुवाद व सार भी प्रकाशित हुए हैं। आगमों पर महत्त्वपूर्ण शोधकार्य भी चल रहे हैं। आधुनिक दृष्टि से आगमों का सम्पादन कार्य भी चल
सुप्रसिद्ध साहित्य मनीषी श्री देवेन्द्र मुनिजी शास्त्री ने अपने महत्त्वपूर्ण शोधप्रधान ग्रन्थ "जैन आगमः साहित्य मनन और मीमांसा' में आगम और उसके व्याख्या साहित्य पर विस्तार से प्रकाश डाला है। मैंने बहुत ही संक्षेप में यहां कुछ विचार व्यक्त किये हैं । विशेष जिज्ञासुओं को प्रस्तुत ग्रन्थ रत्न पढ़ने के लिए सूचन करता हूँ।
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कुछ बालक पिंग पांग खेल रहे थे। मैंने देखा कि एक छोटा सा बॉल है, उस पर जितनी चोटें लगती हैं वह उतना ही जोर से उछलता है । उछलने का रहस्य क्या है ? बॉल का हलकापन ! बॉल हलका होता है, इसलिए उछलता है।
क्रोध आदि विकारों से हलके आत्मा पर भी संसार में चाहे जितनी चोटें लगें, वह उनमें दुःखी नहीं होता अपितु अपने आप में मगन बना उछलता है, कूदता है, अर्थात् प्रसन्न रहता है ।
वास्तव में आत्मा तो हलका है, वजन है कर्मों का, विकारों का। स्थूल भौतिक पदार्थों का।
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