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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
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विलीन हो गए हैं कि जिससे अन्तर्जगत की समस्त प्रवृत्तियाँ ही अवरुद्ध हो गई हैं। इसका एक यह परिणाम अवश्य हुआ है कि वर्तमान मानव समाज को अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियाँ हुई हैं, जिससे सम्पूर्ण विश्व में एक अभूतपूर्व क्रान्ति का उद्भव हुआ है । यह क्रान्ति आज वैज्ञानिक क्रान्ति के नाम से कही जाती है और इससे होने वाली उपलब्धियाँ वैज्ञानिक उपलब्धियाँ कहलाती हैं । आधुनिक विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में ये वैज्ञानिक उपलब्धियां हुई है और हो रही हैं। उन्हीं उपलब्धियों में से एक है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धि । इसे एलोपैथी या आधुनिक चिकित्सा प्रणाली (Modern Medical Science) भी कहा जाता है।
जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की समस्त उपलब्धियाँ भौतिकवाद की देन हैं और उनकी समस्त प्रवृत्तियाँ भौतिकता की ओर ही उन्मुख हैं । इसी सिद्धान्त पर आधारित आधुनिक चिकित्सा प्रणाली भी भौतिकता से प्रेरित और भौतिकवाद की ओर अभिमुख है । मेरे उपर्युक्त कथन की पुष्टि निम्न कारणों पर आधारित है।
आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का मुख्य लक्ष्य केवल शरीर के रोगों की चिकित्सा कर उनका उपशम करना है, ताकि रोगों से मुक्त होकर शरीर भौतिक सुखों का उपभोग कर सके । रोग की चिकित्सा के द्वारा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान शारीरिक स्वस्थता तो प्रदान करता है किन्तु शारीरिक आभ्यन्तरिक शुद्धि तथा मानसिक स्वस्थता के लिए उसके पास कोई साधन नहीं है। इसका कारण संभवतः मुख्य रूप से यह हो सकता है कि मन का प्रत्यक्ष न होने से अथवा मन की स्थिति के सम्बन्ध में पाश्चात्य विद्वानों का भिन्न दृष्टिकोण होने से उन्होंने इस विषय में दूसरे ढंग से विचार किया है । अभिप्राय यह है कि आधुनिक विज्ञान मूलतः प्रत्यक्षवादी होने के कारण उसने इन्द्रियों द्वारा उपलब्ध किए जाने वाले विषयों के अनुसन्धान में ही अपने समस्त साधनों को केन्द्रित किया है । आधुनिक विज्ञान के समस्त साधन भौतिक होने के कारण वे केवल भौतिक वस्तुओं के अनुसन्धान में ही समर्थ हैं ; अन्य विषयों के अनुसन्धान में नहीं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के समस्त साधन चाहे वे परीक्षण के लिए प्रयुक्त किए जाते हों अथवा चिकित्सा के लिए, पूर्णतः भौतिक हैं। वे साधन केवल वहीं तक सक्षम हैं जहाँ तक उन्हें विषय का प्रत्यक्ष है, उससे आगे या उसके अतिरिक्त उनकी गति नहीं है । इसी प्रकार वर्तमान बीसवीं शताब्दी में आधुनिक विज्ञान ने महत्त्वपूर्ण साधनों का आविष्कार कर उनके द्वारा रोग निदान के सम्बन्ध में गूढ़तम विषयों की जानकारी प्राप्त करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। चिकित्सा विषयक अनेक उपकरणों द्वारा कष्टसाध्य व्याधियों को निर्मूल करने तथा रोग समूह पर विजय प्राप्त करने में अद्वितीय सफलता अर्जित की है । तथापि उसकी सम्पूर्ण सफलता और श्रेय एक ऐसी परिधि में सीमित है जो केवल इहलौकिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने में समर्थ है।
चिकित्सा का सामान्य अभिप्राय होता है रोगापनयन । चिकित्सा द्वारा रोग का निवारण होने पर शरीर स्वस्थ होता है और शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ मनुष्य समस्त भोगोपभोग योग्य विषयों का आनन्द प्राप्त करता है। चिकित्सा विधि सामान्यतः दो प्रकार की होती है-एक मुख द्वारा औषधि सेवन अर्थात् आभ्यन्तरिक प्रयोग और दूसरी बाह्य क्रिया विधि अर्थात् विविध उपकरणों या साधनों द्वारा शल्य क्रिया करके अवयव विशेषगत विकृति को दूर करना । ये दोनों ही विधियाँ रोग का शमन या व्याधि को निर्मूल करने में समर्थ हैं। किन्तु इनके द्वारा मानसिक शुद्धि या मानसिक विकारोपशमन किसी भी प्रकार संभव नहीं है । आधुनिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा यद्यपि मानसिक विकृति और उसकी चिकित्सा के सम्बन्ध में भी पृथक् से अनुशीलन चिन्तन और मनन हुआ है किन्तु दृष्टिकोण की भिन्नता के कारण उसने जिस वस्तु को मन की संज्ञा दी है वह भारतीय दर्शनशास्त्र एवं जैन-दर्शन में प्रतिपादित मन से सर्वथा भिन्न वस्तु है । अतः आधुनिक चिकित्सा विज्ञान सम्मत मानसशास्त्र और जैन-दर्शन में प्रतिपादित मानसशास्त्र में मौलिक अन्तर होने से जैनदर्शन उसे मानसिक चिकित्सा विज्ञान स्वीकार नहीं कर सकता।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का मुख्य प्रतिपाद्य विषय भौतिकवाद से प्रेरित होने के कारण उसका अपना कोई स्वतन्त्र मौलिक दर्शन नहीं है। यही कारण है कि दार्शनिक क्षेत्र में उसकी गतिविधि का कोई समुचित मूल्यांकन नहीं किया गया । आधुनिक विद्वानों के अनुसार यह तर्क प्रस्तुत किया जाता रहा है कि पाश्चात्य-दर्शन की चिन्तनधारा का पर्याप्त प्रभाव आधुनिक चिकित्सा विज्ञान पर पड़ा है और उसने उसी परिप्रेक्ष्य में अपने सिद्धान्तों का निर्धारण कर एक नवीन दिशा की ओर अपने कदम बढ़ाए जो अब भी नित नवीन अन्वेषणों के साथ सतत रूप से आगे बढ़ते जा रहे हैं और अपनी नूतन उपलब्धियों के माध्यम से लोक-कल्याण में संलग्न हैं। वस्तुतः यह तथ्यपूर्ण है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का स्वतन्त्र मौलिक दर्शन न होते हुए भी वह पाश्चात्य दर्शन से न केवल प्रभावित है अपितु अनु
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