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जैनधर्म की वैज्ञानिकता और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के सन्दर्भ
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जैनधर्म की वैज्ञानिकता और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के सन्दर्भ
- आचार्य डा० राजकुमार जैन, एम० ए० एच० पी० ए०
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चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से आज भारत में मुख्य रूप से एलोपैथी और आयुर्वेद ये दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं। आयुर्वेद मूलतः भारतीय सांस्कृतिक परम्परा की एक कड़ी है और आदिकाल से भारत में मनुष्यों के जीवन के साथ मिलकर चल रही है। इसके विपरीत एलोपथी पाश्चात्य जगत की देन है जो अंग्रेजों के समय में भारत में भारतवासियों पर थोपी गई थी। इसका उद्भवकाल १८वीं शताब्दी माना जाता है। इससे पूर्व इसके इतिहास की कोई झलक नहीं मिलती। इस प्रकार ये दोनों पद्धतियां आज भारत में जनता की सेवा करते हुए मानव समाज का उपकार कर रही हैं। चिकित्सा की दृष्टि से प्राचीन काल की अपेक्षा आज भारत में बिल्कुल ही विपरीत स्थिति हो गई है। विगत दिनों प्राप्त सरकारी आंकड़ों से विदित होता है कि आज भी देश की ८० प्रतिशत जनता देहाती क्षेत्र में और शेष २० प्रतिशत जनता शहरी क्षेत्र में रहती है । सामान्य चिकित्सा और चिकित्सा सम्बन्धी महत्वपूर्ण साधनों की उपलब्धि का जहाँ तक प्रश्न है उसके अनुसार सम्पूर्ण चिकित्सा सुविधा का ८० प्रतिशत शहरी क्षेत्र में और शेष २० प्रतिशत का ग्रामीण क्षेत्र में विकास है। इस प्रकार शहरों की केवल २० प्रतिशत जनता को ८० प्रतिशत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है और ग्रामीण क्षेत्र की जनता, जो देश का ८० प्रतिशत भाग है, को केवल २० प्रतिशत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है। इसके जो मी कारण हों उनकी गहराई में न जाकर मैं केवल जैन दर्शन की दृष्टि से आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के सम्बन्ध में कुछ तथ्यपूर्ण सिद्धान्तों पर आधारित अपने विचारों को अभिव्यक्त करना चाहता हूँ ।
जन-दर्शन और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में सैद्धान्तिक प्रायोगिक या वैचारिक दृष्टि से यद्यपि कोई विशेष समानता प्रतीत नहीं होती और न ही दोनों के दार्शनिक पक्ष में कोई अनुपूरकता की स्थिति है, तथापि इस दृष्टि से यह विषय महत्त्वपूर्ण है कि मानव समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की वर्तमान उपलब्धियों से लाभान्वित हो रहा है। जिस शरीर के माध्यम से जैन दर्शन आत्म-साधन और आत्मानुशीलन हेतु मनुष्य को प्रेरित करता है उस शरीर को रोगमुक्त बनाकर उसे स्वस्थ रखने में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का वर्तमान समय में अपूर्व योगदान रहा है। आत्मा के बिना शरीर का कोई महत्व नहीं है और शरीर के सहयोग के बिना आत्मा की मुक्ति मिलना सम्भव नहीं है। इस दृष्टि से दोनों एक-दूसरे के अनुपूरक हैं। जैन दर्शन यदि आत्मा को विशुद्ध स्वरूप प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त करता है तो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान मानव शरीर को स्वास्थ्य रूपी विशुद्धता प्रदान करने में समर्थ है। इस दृष्टि से जैन दर्शन और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान दोनों को अप्रत्यक्ष रूप से परस्पर सम्बन्धित माना जा सकता है, किन्तु दोनों का सम्बन्ध ३ और ६ की भाँति ३६ के समान परस्पर विपरीत भावात्मक होगा। क्योंकि जैनदर्शन आध्यात्मिकता का पोषक है जबकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भौतिकता का आधुनिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा वर्तमान युग में मानव समाज का उपकार किस रूप में किस प्रकार किया जा रहा है ? इस पर भी कुछ विचार करना आवश्यक है । तत्पश्चात् उस पृष्ठभूमि के आधार पर जैनदर्शन के साथ उसका सम्बन्ध निरूपित किया जायगा ।
वर्तमान वैज्ञानिक भौतिकवादी एवं प्रगतिशील युग में मानव की समस्त प्रवृत्तियाँ अन्तर्मुखी होकर बहिर्मुखी अधिक हैं। इसी प्रकार मानव की समस्त प्रवृत्तियों का आकर्षण केन्द्र वर्तमान में जितना अधिक भौतिकवाद है उतना आध्यात्मवाद नहीं है। यही कारण है कि आज का मानव भौतिक नश्वर सुखों में ही यथार्थ सुख की अनुभूति करता है, जिसका अन्तिम परिणाम विनाश के अतिरिक्त कुछ नहीं है। वर्तमानकालीन सतत चिन्तन, अनुभूति की गहराई, अनुशीलन की परम्परा और तीव्रगामी विचार प्रवाह सब मिलकर भौतिकवाद के विशाल समुद्र में इस प्रकार
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