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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
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श्रद्धा-स्निग्ध पुष्प
0 पं० मुनि श्री सन्तबाल जी
अजरामरपुरी अजमेर में सन् १९३३ में स्थानकवासी स्वाभाविक अभिरुचि है। साथ ही वे प्रसिद्धवक्ता है, उनके जैन श्रमणों का एक विराट् सन्त सम्मेलन का आयोजन प्रवचन सरल, सरस और गम्भीरता को लिए हुए होते था। उस सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए महागुजरात हैं। वे आगम और दर्शन की गम्भीर गुत्थियाँ इस प्रकार के सन्त-सतीजन भी पधारे। उस समय राजस्थान के पूज्य सुलझाते हैं कि श्रोता मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं। विद्वत्ता के मुनिवर उन सन्तों को किसी भी प्रकार का कष्ट न हो साथ इनमें सरलता और स्नेह का मणि-कांचन संयोग हुआ अतः आबु माउण्ट तक लेने आये और साथ में रहकर है। मेरा यह स्पष्ट अभिमत है कि जो व्यक्ति योग्य शिष्य उत्कृष्ट सेवा व सद्भावना का परिचय दिया। उस सम्मे- होता है वही योग्य गुरु भी बन सकता है। पुष्कर मुनि लन में सम्मिलित होने के लिए मैं अपने पूज्य गुरुदेव कवि- जी ताराचन्द जी महाराज साहब के योग्य शिष्य थे तो वर्य नानचन्द्र जी महाराज के साथ राजस्थान पहुँचा । उस आज वे योग्य गुरु के पद को अलंकृत कर रहे हैं। मैंने समय मरुधरा के तेजस्वी सन्त महास्थविर श्री ताराचन्द्र जब उनके योग्य शिष्यों को देखा तो मेरा हृदय बांसों जी महाराज के सुशिष्य पूज्य श्री पुष्कर मुनि जी के उछल पड़ा। उनके सुयोग्य विद्वान् और तेजस्वी शिष्य निकट सम्पर्क में आने का अवसर मिला। उस समय देवेन्द्र मुनि को मैंने देखा तो मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हुई। पुष्कर मुनि जी संस्कृत साहित्य का अध्ययन कर रहे थे। उनके गम्भीर अध्ययन प्रधान ग्रन्थों को देखकर मुझे लगा उनकी जिज्ञासा वृत्ति ने मुझे प्रभावित किया। सम्मेलनों कि स्थानकवासी समाज में नया युग आ रहा है। देवेन्द्र की भीड़ भड़के में उतना गहरा परिचय न हो सका, किन्तु मुनिजी ने सद्गुरुदेव कवि नानचन्द्र जी महाराज जन्म मैंने उस समय यह अनुभव किया कि पुष्कर मुनि जी एक शताब्दी स्मृतिग्रन्थ में बत्तीस जैन आगमों का सार लिखतेजस्वी युवक सन्त हैं, इनमें प्रतिभा की तेजस्विता है, कर जो दिया, वह उनके स्नेह का साक्षात् प्रतीक है । यह सरलता और नम्रता है।
सार विद्वानों को और जिज्ञासु पाठकों को अत्यधिक प्रिय ___ अजमेर में जिस स्नेह के बीज का वपन हुआ उसको हुआ है। सिंचन मिला बम्बई, सूरत और चींचणी, महावीर नगर, पूज्य पुष्करमुनि जी का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र में । और वह स्नेह दिन-प्रतिदिन वर्धमान रहा है यह अत्यन्त प्रसन्नता की बात है। मैं उनके श्री रहा । मैं पुष्कर मुनिजी के अत्यधिक निकट सम्पर्क में आया चरणों में श्रद्धा स्निग्ध पुष्प समर्पित करता हूँ । मुझे आशा मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि पुष्कर मुनिजी स्थानकवासी ही नहीं अपितु दृढ़ विश्वास है कि पुष्कर मुनिजी और जैन समाज के एक ज्योतिर्धर जगमगाते नक्षत्र हैं। वे उनके शिष्यों के द्वारा जैन धर्म की अधिक से अधिक प्रभागम्भीर विद्वान् हैं, योग, जप और ध्यान के प्रति उनकी बना होगी।
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तुम्हारी साधना निर्मल, तुम्हारी भावना निर्मल। हृदय को कर रही पुलकित, सत्य औ शील की परिमल ।।।
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