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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
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उपाध्याय श्री पुष्करमुनि : एक शब्द-कथा
- अनुयोग प्रवर्तक मुनि श्री कन्हैयालाल जी 'कमल'
अपवर्ग मार्ग के प्रमुख पथिक एवं पथ-प्रदर्शक पतित- पुष्कर सर्वतोमुखम् । पावन पण्डित श्री पुष्कर मुनि श्री वर्धमान श्रमण संघ के
-अम० का० १, वर्ग २, श्लो०४ । एक वरिष्ठ श्रमण हैं । आप संयमी जीवन के ५३ वर्ष पूर्ण पुष्कराम्भोरुहाणि च । करके ५४वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं।
-अम० का० १, वर्ग १०, श्लो० ४१ इस मंगलमय अवसर पर "आपकी अणगार धर्म मूले पुष्कर काश्मीर, पद्मपत्राणि पौष्करे । आराधना एवं रत्नत्रय-साधना यावज्जीवन निर्विघ्न सम्पन्न
-अम० का० २, वर्ग ४, श्लो० १८६ । हो"-ऐसी भव्य भावना रखते हुए "यथा नाम तथा इन विभिन्न शब्द कोशों के अनुसार "पुष्कर" नाम गुण"-इस सूक्ति के संदर्भ में युक्तियुक्त आगम वाक्यों से के जितने अर्थ हैं उनका संकलन इस प्रकार हैपुष्कर नाम की सार्थकता सिद्ध करने का प्रयास कर रहा १पंकज, २ व्योम, ३ पय (पानी), ४ करिकराग्र
(हाथी की शुण्ड) ५ औषधी (पुष्कर मूल नाम की कुष्ट श्री पुष्कर मुनि का व्यक्तित्व आकर्षक है :-कद रोग की औषधी), ६ द्वीप (पुष्कर वर द्वीप), ७ विहग लम्बा, शरीर सुगठित, वर्ण गौर, मुख मुस्कान सिक्त, (पक्षी), ८ तीर्थ (पुष्कर तीर्थराज), ६ उरग (सर्प), १० वाणी ओज युक्त, आचरण चरण संपृक्त, व्यवहार वात्सल्य तूर्य मुख, ११ भाण्ड मुख, १२ काण्ड (स्कन्ध आदि), १३ पूर्ण है। तथा आपकी शिष्य संपदा पुष्य है, एवं नियति खङ्गफल (असिधारा)। निरापदा है।
उपाध्यायश्री के जीवन में ये विभिन्न अर्थ किस नानार्थसूचक पुष्कर नाम
प्रकार चरितार्थ हैं-उद्धत आगम वाक्यों से यहाँ उन श्री हेमचन्द्राचार्य कृत "हेमिनाममाला" में "पुष्कर" सबकी अर्थ संगति करना चाहता हूँनाम के विभिन्न अर्थ
१. पुष्कर-पंकज (कमल) पुष्कर द्वीप-तीर्थाहि-खग-रागौषधान्तरे।
पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे...। तूर्यास्ये ऽ सिफले काण्डे, शण्डाने खे जलेऽम्बुजे ॥
-प्रश्न० सं०५। विश्वकोष के अनुसार “पुष्कर" नाम के नानार्थ- -श्रमण कमल-पत्र के समान अलिप्त रहता है। पुष्करं पंकजे व्योम्नि, पयः करिकराग्रयोः ।
जहापोमं जले जायं, नोबलिप्पइ वारिणा । ओषधि-द्वीप-विहग, तीर्थराजोरगान्तरे ॥
एवं अलित्तो कामेहि, तं वयं बूम माहणं । पुष्करं तूर्यवक्त्रे च, काण्डे खङ्गफलेऽपि च ।
-उत्त० अ० २५, गा०२७। अमरकोश के अनुसार "पुष्कर" नाम के विभिन्न -जिस प्रकार पानी में उत्पन्न पद्म पानी से अलिप्त अर्थ--
रहता है-इसी प्रकार कामभोग रूप पंक में उत्पन्न पुष्करं करिहस्तान, वाद्यभाण्डमुखे जले । होकर भी जो उससे अलिप्त रहता है हम उसे माहण ग्योम्नि खङ्गफले पद्म, तोर्यो षधी विशेषयोः ॥ (ब्राह्मण) कहते हैं।
-अम० का०, ३ वर्ग ३, श्लो० १८६ । न लिप्पए भवमज्मे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं । व्योम-पुष्करमम्बरम्।
-उत्त० अ० ३१, गा० ३४ । -अम० का०१, वर्ग २, श्लो०१। -जिस प्रकार पुष्करणी में पलास पानी से अलिप्त
श्लोक १८, (ब्राह्मण) जो उससे कामभोग रूप
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