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तृतीय खण्ड : गुरुदेव की साहित्य धारा
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उपाध्याय श्री जी की यह प्रवचन पुस्तक काफी महत्त्वपूर्ण है । उनके विचारों का समग्र प्रतिबिम्ब इस पुस्तक में परिलक्षित हो रहा है। इसमें दो खण्ड हैं
१. धर्म और जीवन । २. अध्यात्म और दर्शन
प्रथम खण्ड में धर्म के विविध अंग, जीवन की मूलभूत समस्याएँ और उनका समाधान, धर्मसाधना, मानवता, संयम, विवेक, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, कर्तव्य-पालन, दान, प्रेम, ईमानदारी आदि इन विषयों पर बड़े ही रोचक तथा हृदयस्पर्शी प्रवचन हैं। इन प्रवचनों को पढ़ने से लगता है—प्रवक्ता हमारे सामने ही बैठे हैं। वचन धारा बह रही है और श्रोता उसमें निमज्जित हो रहा है।
दूसरे खण्ड में अध्यात्म जैसे गहन विषय को, दर्शन जैसे नीरस विषय को इतनी सरलता और सरसता के साथ व्यक्त किया गया है कि कहीं भी ऊब नहीं, थकान नहीं। साधना, ज्ञानोपासना, ध्यान, सम्यक्दर्शन आदि विषयों पर भी बड़े ही अनुभूति-परक और श्रु तज्ञान से समृद्ध प्रवचन हैं । उपाध्याय श्री जी के अब तक के प्रवचन साहित्य का यह एक दोहन कहा जा सकता है। जनधर्म में वान : समीक्षात्मक अध्ययन
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी के विशिष्ट प्रवचनों की यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। वास्तव में तो यह प्रवचन पुस्तक होकर भी एक तुलनात्मक शोध पुस्तक बन गई है। दान जैसे विषय पर इतना विस्तृत और सर्वांगीण विवेचन सम्भवतः पहली बार पुस्तकारूढ़ हुआ है।
इसमें दान की परिभाषा, प्रेरणा, लाभ आदि विषयों से प्रारम्भ कर दान की विविध प्रक्रियाएं, दान के गुणदोष, पात्रापात्र विचार आदि गम्भीरतम विषयों को बड़ी ही सरल तथा सटीक भाषा-शैली में स्पष्ट किया है। इस पुस्तक के तीन खण्ड हैं और उनमें चवालीस प्रवचन हैं । सम्पादन की विशिष्ट शैली के कारण प्रवचन कहीं-कहीं निबन्ध जैसे और ग्रन्थों के सन्दर्भो के कारण भारी अवश्य बन गये हैं।
उपाध्याय श्री के प्रवचन का तीसरा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है 'श्रावक धर्म दर्शन'। श्रावक धर्म पर विस्तार के साथ चिन्तन प्रस्तुत किया है। मानव-जीवन का लक्ष्य, व्रत की महत्ता और श्रावक के बारह व्रतों पर इतनी गहराई से चिन्तन किया है कि पाठक पढ़कर झूमने लगता है, व्रतों के सम्बन्ध में जो भ्रांत धारणाएं हैं उनका भी यत्र-तत्र निरसन किया गया है। वस्तुतः श्रावक के जीवन की आचार-संहिता को समझने के लिए यह अद्भुत प्रन्थ है।
देवेन्द्र मुनिजी से मुझे ज्ञात हुआ कि उपाध्याय श्री के उन प्रवचनों का सँकलन जो उनके पास है उसे विषय बार सम्पादित कर पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया जाय तो पच्चीस पुस्तकें सहज रूप से प्रकाशित हो सकती हैं।
उक्त तीनों ग्रन्थ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी के विचार और वाणी का अद्भुत चमत्कारी रूप प्रस्तुत करते हैं जिनके स्वाध्याय से ज्ञान की वृद्धि और सत्कर्म की प्रेरणा प्रवाहित होती है। विशिष्ट प्रवचनकार उपाध्याय श्री जी की वाणी साक्षात् श्रवण में तो अद्भुत आनन्ददायिनी है ही, किन्तु प्रवचनों के स्वाध्याय से भी श्रोता का हृदय आनन्द निमग्न अवश्य होगा।
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