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धो पुष्करमुनि अभिनन्दन अन्य
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१ उनकी वाणी में शब्दों का उपयुक्त चुनाव है। २ उनकी वाणी में ओज और प्रवाह है। ३ उनकी वाणी के पीछे निःशंकित परिपुष्ट ज्ञान है-व्याकरण, इतिहास, धर्मशास्त्र और लोक
व्यवहार का। ४ उनके वचन मधुर और हितकारी होते हैं। ५ उनकी वाणी में चरित्र का बल है। ६ उनके वचन विचार युक्त होते हैं। ७ उनकी वाणी समयोपयोगी होती है।
इन्हीं मुख्य कारणों से उनके व्याख्यानों, भाषणों और वार्तालापों को भी हम 'प्रवचन' कह सकते हैं । जैन परिभाषा उक्त गुणों से युक्त वाणी को ही 'प्रवचन' कहती है, और ऐसे 'प्रवचन कुशल' मनीषी को धर्म का प्रवक्ता, व्याख्याता और प्रभावक माना गया है।
बहुत से वक्ता बड़ी लच्छेदार और प्रभावशाली भाषा में बोलते हैं, श्रोता सुनते-सुनते सिर हिलाने लगते हैं, किन्तु कुछ समय बाद अगर उसमें से कुछ सार निकालना चाहें तो 'शून्य' हाथ आता है । और बहुत से विचारक अपने गम्भीर और प्रेरणादायी विचारों को भाषा का उपयुक्त तथा सशक्त आधार नहीं दे पाते इस कारण विचार लंगड़ाते ही रह जाते हैं।
श्री पुष्कर मुनिजी के भाषण या प्रवचन विचारपूर्ण होते हैं। उनका अध्ययन व्यापक है, अनुभव गहरा है और अभिव्यंजना शक्ति भी विकसित है, इस कारण उनके वचन में विचार का तेज होता है तो विचार में वचन का सौन्दर्य खिलता है। उपाध्याय श्री जी पहले अधिकतर राजस्थानी भाषा (मेवाड़ी मिश्रित बोली) में बोलते थे, अब जबकि राजस्थान की सीमा से बाहर विचरण कर रहे हैं वे हिन्दी मिश्रित राजस्थानी में बोलते हैं। उनकी भाषा में चुटीलापन गजब का होता है, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, लोक व्यंग्य तथा जीवन के निकटतम में चलने वाले ऐसे मार्मिक शब्द वे बोलते हैं कि श्रोता समुदाय कभी खिलखिलाकर हंस पड़ता है तो कभी विचारों से अभिभूत होकर आत्म-निरीक्षण में डूब जाता है। अगर वे दान, त्याग, तप या सेवा की कोई प्रेरणा देते होते हैं तो बस उत्साह उमंग की गंगा-जमुना बह पड़ती है। दान की झड़ी लग जाती है। त्याग व तप की होड़ मचने लगती है। सेवा के सुप्त संस्कार जन समुदाय में जाग पड़ते हैं। यह उनकी वाणी की सफलता है। वाणी में चरित्र एवं विचार-बल का साक्षात् प्रमाण है। प्रवचन साहित्य
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी के हजारों प्रवचनों का संकलन कर संपादन कर देना टेढ़ी खीर है। पर, साहस के धनी और कठोर श्रम एवं निष्ठाशील विद्वान् श्री देवेन्द्र मुनिजी ने इस कार्य को भी साध लिया है। अब तक लगभग १०-१२ प्रवचन पुस्तकें तैयार होकर छप चुकी हैं। जिनमें प्रमुख हैं
0 संस्कृति के स्वर (हिन्दी एवं राजस्थानी) 0 मिनखपणा रो मोल (राजस्थानी) 0 रामराज, 0 जिन्दगी की मुस्कान D जिन्दगी की लहरें 0 साधना का राजमार्ग
जिन्दगी नो आनन्द 0 सफल जीवन ।
उक्त प्रवचन-साहित्य की मांग काफी अच्छी रही । पुराने संस्करण शीघ्र समाप्त हो गये। अतः पुराने साहित्य को नई दृष्टि व शैली से पुनः संपादित कर उसमें से काट-छाँटकर एक प्रतिनिधि प्रवचन पुस्तक श्री देवेन्द्र मुनि जी ने पुनः तैयार की है
-"धर्म का कल्पवृक्ष : जीवन के आँगन में"
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