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(२) घी कभी सीधी उँगलियों से नहीं निकलता ।
(३) सिंह का पुत्र सिंह ही होता है।
(४) कोढ़ में खाज होना ।
(५) दाँतों तले उँगली दबाना ।
(६) द्विविधा में दोनों गए- माया मिली न राम । (७) चूहे का बेटा बिल ही खोदता है ।
(८) मरे के साथ कौन मरता है।
( 2 ) भाग्य के बिना धन नहीं मिलता ।
(१०) गंगा क्या तो नहाये और क्या निचोड़े।
(११) एक सहस्र चूहे खाकर बिल्ली तप करने बैठी है ।
(१२) जैसी नीयत वैसी बरक्कत ।
(१३) मानव के मन कछु और है कर्त्ता के कछु और । (१४) चोर-चोर मौसेरे भाई
तृतीय खण्ड : गुरुवेव की साहित्यधारा
(१५) धन पाकर प्रायः मनुष्य विवेकहीन हो जाता है । (१६) ज्ञान का अजीर्ण अभिमान और तप का अजीर्ण क्रोध है ।
(१७) वक्त पड़ने पर गधे को बाप बनाना ।
(१०) शुभस्य शीघ्रम् अच्छे कार्य को शीघ्र करना चाहिए। (१६) भविष्य को सुधारना चाहते हो तो वर्तमान को सुधारो ।
(२०) सत्संगति का प्रभाव तुरन्त पड़ता है । (२१) शुभ-अशुभ कर्मों के उदय से आदमी को बनते बिगड़ते देर नहीं लगती।
(२६) मृत्यु की गति सर्वत्र है। वह कहीं भी पीछा नहीं छोड़ती ।
(२७) तुलसी जस भवितव्यता, तैसी मिले सहाय ।
आपु न जावै ताहि पर, ताहि तहाँ ले जाय ॥
(२८) देव की गति बड़ी विचित्र है। देव किसी को क्षमा नहीं करता ।
(२१) दृष्ट के मरने पर सभी प्रसन्न होते हैं।
- जै. क. भा. १०, पृ० १०६
(२२) पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होय ।
- जै. क. भा. ११, पृ० १२
( वृद्ध की नवयौवना पत्नी चंचल क्यों न होगी ? ) (२३) कामान्धो नैव पश्यति ।
- काम पीड़ित कुछ नहीं देखता है। (२४) करेले की बेल नीम पर चढ़ गई।
- जै. क. भा. ११, पृ० १२ — जे. क. भा. १२, पृ० २०
(२५) दारिद्रय के समान पराभव नहीं, क्षुधा के समान वेदना नहीं और मरण के समान भय नहीं ।
(३७) जब तक पूरा नहीं भर जाता, तब तक पाप का घड़ा नहीं फूटता।
(३८) छोटा मुँह बड़ी बात कहना ।
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- जै. क. भा. १३, पृ० १७८
- जं. क. भा. १६, पृ० १३१ —जै. क. भा. २१, पृ० ४ - जं. क. भा. २१, पृ० १०
- जै. क. भा. २२, पृ० ३७
- जै. क. भा. २२, पृ० ४४ -जे. क. भा. २२, पृ० ६३ -जे. क. भा. २२, पृ० १०२ -जै. क. भा. २२, पृ० १५२ - जै. क. भा. २२, पृ० २०२ - जै. क. भा. ६, पृ० ३४ जे. क. भा. &, पृ० ४९ —जे. क. भा. ६, पृ० १७० -जै क. भा. १०, पृ० १२ जे. क. भा० १०, पृ० ४७
- जै. क. भा. ८, पृ० १३३ - जै. क. भा. ११, पृ० ७ —जै. क. भा. १२, पृ० २८
(२१) आवेश में किया गया निर्णय न्यायपूर्ण नहीं होता।
(३२) विवाह तो एक समझौता है ।
(३३) नीच प्रकृति के मनुष्यों के मन, वाणी और किया में कभी समानता नहीं
होती ।
(३४) लाल गुदड़ी में भी नहीं छिपते ।
(३५) थोड़ा सा धन पाकर क्षुद्र बौरा जाते हैं ।
(३६) सज्जन और शर (वाण) का स्वभाव एकसा ही होता है।
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(३०) स्त्रियाँ वंचकता, छल-कपट, कठोरता, चपलता आदि दुर्गुणों की खान होती हैं ।
- जै. क. भा. १२, पृ० १५४ -जै. क. भा. १२, पृ० १५४
- जै. क. भा. १२, पृ० १५६ - जै. क. भा. १२, पृ० १७० -जै. क. भा. २३, पृ० ५४
जे. क. भा. २३, पृ० १२७ - जै. क. भा. २४, पृ० १० - जै. क. भा. २४, पृ० १०
- जे. क. भा. २४, पृ० १३४ - जै. क. भा. २४, पृ० १४२ - जे. क. भा. २४, पृ० १५२ -जै. क. भा. २४, पृ० १५३ जै. क. भा. २५, पृ० १०८ - जे. क. भा. २५, पृ० १२६
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