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तृतीय खण्ड : गुरुदेव की साहित्य धारा
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दिये जाते हैं। "अतः भारत में बानर, राक्षस, गंधर्व, नाग, यक्ष आदि जातियाँ रहती थीं। ये जातियाँ परस्पर मिलकर रहती थीं। इनकी अपनी सामाजिक व्यवस्थाएं भी विद्यमान थीं। इस अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि सिंहल के आदिवासी याक्ख हैं। 'जक्खू' जाति के लोग तेलेगु के आदिवासी हैं । कुरव जाति के लोग शेयोन या मुसगन की पूजा करने वाले तमिल के आदिवासी हैं । नेपाल में 'याखा' जाति के लोग रहते हैं । ब्रज-प्रांत में 'जखिया' शब्द यक्ष-पूजा के लिए अधिक प्रचलित शब्द है। यों जक्कू-जखिया-याखा-याक्ख-आदि रूप यक्ष शब्द में अन्तर्भुक्त हैं।
जैन कथाओं में सूक्तियाँ "सूक्ति में प्रबुद्ध जीवन का चिरानुभूत अनुभव रहता है । निरन्तर जिस सत्य को समीचीन माना जाता है वही सूक्ति बनकर लोक-प्रिय बनता है तथा उसे जनता अपनी मार्गदर्शिका मानने लगती है। चिरन्तन तथ्यों पर आधारित सूक्तियाँ जनमानस को प्रभावित करती हैं और विषम परिस्थितियों में एक समाधान को प्रस्तुत करके अपनी उपयोगिता को प्रमाणित कर देती है। जिसप्रकार प्रगाढ़ अन्धकार मे अनन्त आकाश की एक तारिका पथविमुख पथिक को रास्ता बताती है, उसीप्रकार संसार की विभीषिकाओं से त्रस्त मानव को एक सूक्ति अमिट सहारा देकर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है । भयावह तूफान में भ्रमित पोत को जिस प्रकार प्रकाशस्तम्भ गन्तव्य का संकेत देता है उसी प्रकार एक सूक्ति विषम वातावरण से विक्षुब्ध मानव को सुस्थिर कर जीवन के व्यवस्थित लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए आश्वासन प्रदान करती है ।"२
जिस प्रकार एक अनगढ़ पाषाण-खण्ड सर-सरिताओं की उत्ताल तरंगों के कठोर आघातों को सहते-सहते कुछ समय के पश्चात् शिवलिंग में रूपायित होता है उसीप्रकार एक साधारण कथन जब कई बार सत्य की कसौटी पर परीक्षित होकर व्यापक सत्य को अंगीकार करता है, तभी वह सूक्ति के रूप में समाहत होता है।
जन-कथाओं में सूक्तियाँ विविध रूपों में प्राप्त होती हैं जिनमें धार्मिकता, राजनैतिक सौष्ठव, राष्ट्रीयता एवं नैतिकता मुखरित हुई है । जैन कथाकारों का प्रमुख लक्ष्य मानव को भौतिक-वातावरण से विमुक्त कर धर्म की ओर प्रेरित करता है । अतः इन कथाओं में यथावसर ऐसी सूक्तियाँ प्रस्तुत कर दी गई हैं जो पूर्णरूपेण कथा के अन्तर्भाव को मुखरित करती हुई एक ऐसा उल्लास प्रस्तुत कर देती हैं जो प्रमुख पात्र की मानसिक अनुभूति को प्रज्वलित करने में समर्थ होता है। जीवन की सचाई ही इन सूक्तियों का प्रमुख आधार है। यहाँ पूज्य श्री पुष्कर मुनि जी द्वारा लिखित जैन कथाओं के विभिन्न भागों से संकलित कुछ सूक्तियाँ दी जाती हैं जो अध्यात्मयोगी के अगाध अनुभव के बहुमुखी आयामों को उजागर करती हैं१. देवाधिष्ठित पदार्थ पापात्माओं के पास कभी नहीं ठहरते ।
-जैन कथाएं भाग १, पृ०७७ २. किसी राजा से वैर मत रखो, शक्ति के मद में आकर किसी पर चढ़ाई मत करो, और किसी के साथ धर्म ठगाई मत करो।
-जैनकथाएँ भाग १, पृ० १३० ३. विपत्ति सबसे बड़ा शिक्षक है। यदि विपत्ति के समय मनुष्य धैर्य से काम ले तो नये-नये अनुभव और संकटों से बचने के अद्भुत मार्ग अपने आप सूझ जाते हैं।
-जैन कथाएँ भाग २, पृ० ३३ ४. निर्धन होने पर अपने भी पराये हो जाते हैं, यह तो संसार की रीति है, फिर भी आशा की बेल सदा हरी-भरी रहती है, इसे नहीं त्यागना चाहिए।
----जैन कथाएँ भाग २, पृ० ६२ ५. जो दूसरों का बुरा चाहता है उसका बुरा पहले होता है।
-जैन कथाएँ भाग ३, पृ० ६ ६. यह सांसारिक जीवन द्वन्द्वात्मक है। पूरा मानव-जीवन द्वन्द्वों से भरा है। -जैन कथाएँ भाग ३, पृ० ५७ ७. होनहार बड़ी प्रबल होती है । जो होना है वह टलता नहीं
-जैन कथाएँ भाग ४, पृ०२५ ८. पूरा जगत धन-लिप्सा की दौड़ में लोभ के अश्व पर सवार होकर दौड़ रहा है।
-जैन कथाएँ भाग ४, पृ० ४७ ६. कौए में पवित्रता, जुआरी में सत्य, सर्प में शांति, स्त्री में कामोपशमन, निर्बल में धैर्य, शराबी में तत्त्व चिंतन और राजा को मित्र किसने देखा या सुना है।
-जैन कथाएं भाग ५, पृ०७६ १०. दुष्ट और षड्यंत्र कारी कभी-कभी सात्त्विक वृत्ति वालों पर इसी प्रकार छा जाते हैं, जिस तरह मंथरा ने कैकेयी को अपने कपट जाल में फांसा था।
-जैन कथाएं भाग ६, पृ० ११६
१ सम्मेलन पत्रिका भाग ६० : संख्या ४, पृष्ठ ८६-६२ (साभार) २ सूक्ति सागर (भूमिका)
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