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श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
महायोग की सुरसरिता में मज्जन करने आते । हामी बनते सत्य-पंथ के, है मुख-मुख से यश गाते ॥ राकापति-सी शीत चांदनी मुखमण्डल पर फैली। जरा ध्यान से देखा उनको, जनता उनकी हो ली ॥ कामकली से कनकली से पाया है निस्तारा
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पावन पुष्कर योगीश्वर का, हो अभिनन्दन प्यारा ॥
वंदना
D जिनेन्द्र मुनि काव्यतीर्थ
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अमर देव की अमर धार को, जिनने अमर बनाया । भिन्न समझकर आत्म- देह को, देह-मोह बिसराया ॥ नन्ही सी उस वय किशोर में, जगमग जग ठुकराया। दमन किया है तन को, मन को, पावन जीवन पाया ॥ नमन चरण में, सदा शरण में, 'चन्द्रवती' सम धारा । पावन पुष्कर योगीश्वर का, हो अभिनन्दन प्यारा ॥
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गुणी गुणों से विश्व को, वितरें नव आलोक । उनकी आशी से स्वतः मिट जाते सब शोक ॥ ज्ञान राशि के स्रोत सा, सुन्दर संयम रत्न । गुरु श्री के कारुण्य का, करू स्वयं में यत्न ॥ साधक दिव्य - प्रकाश का वीतराग अनगार । ज्योतिर्धर सी रावरी, शोभा अपरम्पार || संयम सेवा सिद्धि से, ज्ञानयोगि सुषमेश । समता रस में लीन महामुनीश्वर शेष ।। क्षमा-शील सारल्य के, जीवितरूप अपार ।
वन्दनीय मेरे प्रभो, नमता हूँ शतवार ॥
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शान्त, दान्त, ज्ञानी, गुणी, श्रमणसंघ शार्दूल । आपहि शोभे आप से, गुण वर्गन निर्मूल ॥ संयम के सौन्दर्य की, वर्द्धमान गुण गान । विहरे धर्म प्रचार को, शोभित शासन जिज्ञासु के ज्ञान मँहि करते ज्ञान लभह वे जीव, विहरें सदा प्रज्ञा के आलोक महि, अवलोकित कभी न भूलूं रावरे, गुरुवर के अहो पूज्य गुरुदेव श्री गुणोदधि नमता भजता नित्य ही, नहि में अपितु समाज ॥
संसार |
उपकार ॥
गुरुराज ।
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करते जग उद्धार । स्वीकृत हो निरधार ।
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अद्भुत निर्मल ज्ञान से, मुनि जिनेन्द्र प्रणमत सदा
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मान ॥
ज्ञानालोक ।
अशोक ॥
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