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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
उपाध्याय
पुष्कर
मुनिवर
का
ज्योतिर्धर, अध्यात्मयोग के आराधक जो,
भारतीय सन्तों में मुनिवर प्रमुख सन्त हैं । सरल हृदय, गुरुभक्त, विनय के सागर हैं जो,
जिन संस्कृति-आगम ग्रन्थों के ज्ञानवन्त हैं।
भक्ति, ज्ञान औ कर्मयोग का हुआ समन्वय,
जिसमें वह साधना आपकी अहो । धन्य है ।
इसीलिए तो मिली सिद्धियाँ इस जीवन में,
मुनिवर के सम प्रखर तपस्वी कौन अन्य है ।
अंगारों में सोने को गलना पड़ता है,
तब जाकर कुन्दन का सचमुच रूप दमकता ।
अन्धकार के कण-कण को विदलित करके ही,
तरुण सूर्य प्रातः अम्बर में सदा चमकता ।
जप-तप से ही सच्ची सिद्धि मिला करती है,
संचित कर्मों का तप से ही होता है क्षय ।
उपकारक ही रही आपकी योग-साधना,
मत्र्यलोक में प्राप्त कर लिया है यश-अक्षय । का सन्देश सुनाया,
जिनवाणी - कल्याणी
भक्तों के अन्तर्तम का तम हरण किया है । अशरणशरण ! अहो ! पुष्कर मुनिवर चरणों में
सन्त " कमल" का अपरिहार्य शत शत वन्दन हो । उपाध्याय पुष्कर मुनिवर का अभिनन्दन हो । मत्त-मधुप सी मधुर और ओजस्वी वाणी सत्य,
अचेतन में भी चेतनता लाती है । सदियों से सोये समाज में मुनि-सिंहों की,
हुँकारें ही युग को जागृत कर जाती 1
सच्चरित्र ला देते हैं युग में परिवर्तन,
श्रमणसंघ में सचमुच अनुशासन का बल है ।
महानाश की ज्वाला को जो शान्त कर सके,
मुनिवर के मानस में उस करुणा का जल है ।
एकसूत्र में बांध दिया है जन-मानस को,
धन्य हुई साहित्य साधना मिल मुनिवर से ।
वरदहस्त मिल गया जिसे वह धन्य हो गया,
कितनों को निर्मुक्त कर दिया अपने कर से ।
खुली हुई हैं संस्थाएं लोकोपकारिणी,
प्रगति पन्थ के राही क्या रुकते राहों में । कितनी निर्मलता है मुनिवर के भावों में,
सागर-सा गर्जन होता उनकी आहों में ।
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