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Sras • १०२
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
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पाशीवचन । श्रमणसूर्य प्रवर्तक मरुधरकेशरी मिश्रीमल जी महाराज
घटा छटा चपला चमक, पेखत सब पुलकंत ।
अभिनन्दन पुष्करतणो, स्रोण सुणत विकसंत ॥१॥ नेक-नेक देख-देख, युक्तियाँ अनेक अहा ! संग्रह करत नित साहित्य सजान को। वाद को विसार, स्याद्वाद पं श्रद्धान ठान, देत ज्ञान-दान सुना तत्व के विज्ञान को । तन से प्रमाद टार, नमोकार जाप सार, भावना प्रबल धार करण कल्याण को। प्रेम को प्रवाह जहाँ, जनता अपरिमित, दौड़-दौड़ आवे पेख पुष्कर नहान को ॥२॥
वह पुष्कर अजमेर ढिग, यह पुष्कर मुनि-संघ । वह भौतिकता से भरा, यह आध्यात्मिक रंग ।।३।। तन प्रक्षालन तीर्थ हैं, मन प्रक्षालन एह । देह नेह बिन छह युत, इतत्तो जान विदेह ॥४॥ अमरगच्छ अरविंद अह ! महकत परम पराग । जो पावत उन जीव का, भल हल मानहु भाग ।।५।। नम्रभाव अति शांतता, राजत मुख मुस्कान । भव्य भौर मन मुदित व्है, सुनत एक व्याख्यान ॥६॥ मधुर-कंठ कोमल कृति, सहनशीलता वंत । गुरु-भक्ति जानी भली, कली-कली विकसंत ।।७।। बढ़ जो शुभ शिष्यों सहित, चढ़ जो उन्नति शैल । "मिश्री" यश सौभाग्य से, दीर्घायु रंग रैल ।।८।।
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