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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
श्रद्धा के केन्द्र : गुरुदेव
ती
0 श्री घीसूलाल रांका, बैगलोर (गढ़सिवाना)
माने और पहचाने हुए
और निरन्तर चल
कठोर हैं उतने है
महाकवि भवनाम संवरण नहीं कर सके श्रीचरणों में प्रमस्थली गढ़ सिवाना
परम श्रद्धय सद्गुरुवर्य स्थानकवासी जैन परम्परा के है। व्यक्ति अपनी कमजोरी को दबाना चाहता है । वह एक जाने-माने और पहचाने हुए सन्त प्रवर हैं । बाल्यकाल उसे स्वीकार भी नहीं करता। किन्तु महापुरुष वे हैं जो से ही संयम-साधना के महापथ पर चले और निरन्तर चल अपनी कमजोरी को जनता के सामने रखते हैं। वे अपने प्रति रहे हैं। बिना रुके, बिना विश्राम लिये, निरन्तर आगे जितने कठोर हैं उतने ही दूसरों के प्रति भी स्नेहिल हैं। बढ़ना ही जिनके जीवन का संलक्ष्य रहा है उनके सम्बन्ध मैंने गुरुदेव श्री के दर्शन बाल्यकाल में किये थे। मेरी में लिखना बहुत ही कठिन है । तथापि भक्ति-भावना से जन्मस्थली गढ़ सिवाना पर गुरुदेव श्री की तथा उनके विभोर होकर हृदय के निर्मल भाव उनके श्रीचरणों में पूर्वजों की अपार कृपा-दृष्टि रही है जिसके फलस्वरूप हम समर्पित करने का लोभ संवरण नहीं कर सकता। लोग स्थानकवासी बने रहे हैं। कर्नाटक प्रान्त में व्यवसाय
महाकवि भवभूति ने महापुरुष की परिभाषा करते होने के कारण उसके पश्चात् लम्बे समय तक व्यवसाय में हुए लिखा है कि महापुरुष वह है जो कभी वन से भी उलझे रहने के कारण दर्शनों का सौभाग्य न मिल सका। कठोर होता है और कभी कुसुम से भी कोमल । कठोरता बम्बई, पूना, रायचूर, बल्लारी आदि स्थानों पर दर्शनों और कोमलता ये जीवन के दो दृष्टिकोण हैं। व्यक्ति का व सेवा का लाभ मिला। हमारे सद्भाग्य से गुरुदेवश्री को कब कठोर होना चाहिए और कब कोमल होना चाहिए का सन् १९७७ का वर्षावास बेंगलोर हुआ । इस यह उसके प्रबुद्ध विवेक पर निर्भर है। भारतीय चिन्तन ने वर्षावास में हमारे को अत्यधिक सन्निकटता से गुरुदेव श्री कहा है, धर्मशास्ता को अपने कर्तव्य के प्रति अत्यन्त कठोर के सम्पर्क में आने का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने देखा, गुरुहोना चाहिए और अन्य शिष्यों के प्रति उसे कोमल भी देव श्री का हृदय बहुत ही सरल है, कापट्य जीवन उन्हें होना चाहिए । जहाँ तक अनुशासन-पालन का प्रश्न है, पसन्द नहीं है। वे जागरूक हैं । एक क्षण का प्रमाद करना बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास का प्रश्न है, वहाँ उन्हें भी उन्हें इष्ट नहीं है । वे स्वयं ज्ञानसाधना, ध्यानसाधना कठोर होना चाहिए जिससे परम्परा में शैथिल्य न और जपसाधना करते हैं। इस उम्र में भी वे लिखते आ सके । आचार-निष्ठ और विनयशील शिष्यों के प्रति रहते हैं और नियमित समय पर ध्यान व जप की साधना मृदुता का व्यवहार भी करना चाहिए, जिससे अनुशासन में भी करते रहते हैं। गुरुदेव श्री का प्रवचन भी इतना सरस अव्यवस्था उत्पन्न न हो। मैंने देखा है गुरुदेव श्री बहुत ही और प्रभावपूर्ण होता है कि श्रोता मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं। सजग हैं। कहीं भूल न हो जाय इस सम्बन्ध में वे जाग- यही कारण है, बेंगलोर वर्षावास में जो धर्म की प्रभावना रूक हैं। और परिस्थिति के कारण कभी अपवाद मार्ग हुई वह अद्भुत और अनूठी है। मैं ज्यों-ज्यों गुरुदेव श्री के का सेवन होने पर उसके परिष्कार के लिए भी तैयार हैं। निकट सम्पर्क में आता गया त्यों-त्यों मेरी श्रद्धा गुरुदेव श्री बेंगलोर में श्रद्धेय सद्गुरुवर्य के प्रोस्टेट ग्रन्थि का आप- के प्रति दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ती रही है। उनके जैसे रेशन हुआ। आपरेशन में अपवाद रूप में जो भी दोष महान् सन्त बहुत ही कम हैं। हमें अपने गुरुदेव पर, उनके लगे उस सम्बन्ध में लिखित रूप से आलोचना आचार्य चारित्रिक निर्मलता पर, विचारों की पवित्रता पर, हार्दिक सम्राट के पास प्रेषित की और उनके द्वारा दिये गये गौरव है । गुरुदेव श्री पूर्ण स्वस्थ रहकर हमें सदा आशीप्रायश्चित्त को उन्होंने प्रवचन सभा में हजारों लोगों के दि प्रदान करते रहें जिससे हम धर्म के क्षेत्र में खूब बीच ग्रहण किया, जो उनकी महानता का ज्वलन्त प्रतीक प्रगति करें।
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