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प्रथम खण्ड : अवार्चन
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भूरि प्रशंसा की है।] उस समय उपाध्याय श्री और श्री आदि भाषाओं पर आपका समान अधिकार है। सरलता, देवेन्द्र मुनि के साथ साहित्यिक और सामाजिक समस्याओं सुबोधता और सरसता आपकी साहित्यिक कृतियों की पर बातचीत हुई। इस बातचीत में मैंने पाया कि उपाध्याय विशेषतायें हैं । आप कहीं भी जटिल और बोझिल नहीं श्री जहाँ गूढ़ शास्त्रवेत्ता हैं, वहीं सरस-कवि, ओजस्वी बनते । पीयूषवर्षी मेघ की भांति आप श्रोताओं के हृदय व्याख्याता और प्रवचन-पटु भी हैं। आपका शास्त्रीय ज्ञान को रसविभोर कर देते हैं। क्या प्रवचन, क्या कथा गहन और लोकानुभव विस्तृत है।
और क्या कविता; सब में आपके व्यक्तित्व का तेज, भावों समाज को शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते का सारल्य और भाषा का लालित्य एक साथ प्रकट होता रहने की आप निरन्तर प्रेरणा देते रहे हैं । आपकी प्रेरणा है। से श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय उदयपुर की स्थापना हई साहित्य और साधना का यह ऋषि निरन्तर अपने जिसके माध्यम से जीवनोपयोगी और ज्ञानवर्धक कई पुस्तकें लक्ष्य की ओर बढ़ता जा रहा है । अपने पथ में यह अकेला प्रकाशित हुई हैं । मेवाड़, मारवाड़, गुजरात, महाराष्ट्र, नहीं है। इसने अपने कई विद्वान् श्रमणों और विदुषी मध्यप्रदेश, दिल्ली आदि अनेक क्षेत्रों में आपने चातुर्मास श्रमणियों को भी इस साधना-पथ पर बढ़ने के लिए सक्षम किये हैं और जगह-जगह शिक्षणसंस्थान, गोशाला, और सामर्थ्यवान बना दिया है । सब बढ़ रहे हैं युगपत् । चिकित्सालय, पुस्तकालय आदि खोलने की प्रेरणा दी है। ऐसे मनीषी सन्त और रचनाधर्मी सांस्कृतिक चेतना के धनी
श्री पुष्करमुनि का साहित्यिक और सांस्कृतिक तेजस्वी व्यक्तित्व का उसकी संयमसाधना के ५४ वर्ष व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली है। उसमें ज्ञान, भक्ति और सम्पन्न होने के पुनीत प्रसंग पर हार्दिक अभिनन्दन और कर्म की त्रिवेणी प्रवाहित है । संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी विनम्र वन्दनार्चन ।
राजस्थानकेशरी श्री पुष्करमुनि जी
0 श्री रिषभदास रांका जैनधर्म के प्रसार में ब्राह्मणों का योगदान कम नहीं जैसे आचार्य महापंडित और साहित्यिक ब्राह्मण ही थे। है। भगवान महावीर के प्रथम और प्रमुख शिष्य ब्राह्मण उत्तर में ही नहीं दक्षिण में भी अनेक आचार्य तथा साहिही थे । ब्राह्मणों में विद्या या सरस्वती की उपासना प्राचीन त्यिक ब्राह्मण थे। यही कारण है कि उन्हें सरस्वती पुत्र काल से चली आ रही है। भगवान महावीर एवं तथागत या सरस्वती के उपासक माना है। क्षत्रिय को शक्ति का बुद्ध ने ब्राह्मण के जो लक्षण बताये वे लगभग समान हैं। और वैश्यों को लक्ष्मी का उपासक माना है। प्राचीन काल वे कहते हैं-ब्राह्मण, तपस्वी, अकिंचन, इन्द्रिय-निग्रही, कृश में ही नहीं, आज भी अनेक ब्राह्मण जैन साहित्य और विद्या काय, ब्रतस्थ, शांत, दान्त, अलोलुप, अनासक्त, जल-कमल की सेवा करते हैं और उन्हींमें राजस्थानकेसरी श्री पुष्कर की तरह निर्लिप्त,, ब्रह्मचारी, सत्यवक्ता, अहिंसक, ज्ञानी, मुनिजी एक हैं। उन्होंने साहित्य को सेवा तो की है किन्तु दृढनिश्चयी, राग-द्वेष व भयरहित होता है। वैदिक उनकी विशेषता यह भी है कि उन्होंने साहित्य की उत्तम धर्म ने भी इसी तरह के गुणयुक्त व्यक्ति को ब्राह्मण कहा सेवा करने वाले शिष्यों का भी निर्माण किया है।। है। गीता ने ब्राह्मण के नौ गुण बताये हैं-शम, दम, तप, उनका जन्म मेवाड़ की वीरभूमि में हुआ। अतः शौच, शान्ति, आर्जव, ज्ञान, विज्ञान, आस्तिक्य। ये गुण ब्राह्मण होते हुए भी उन पर वीरता का प्रभाव पड़े बिना जिसमें हों वह ब्राह्मण । स्वाभाविक ही परम्परा से ये गुण नहीं रहा। वे जितने ब्राह्मण हैं उतने क्षत्रिय भी है। जिसे प्राप्त हैं वे ब्राह्मण उत्तम धर्म प्रसारक हो सकते हैं वीरता उन्हें मेवाड़ के शौर्य भरे वातावरण से प्राप्त हुई
और यही कारण है कि भगवान महावीर के धर्म का है और वे ब्राह्मण की तरह क्षत्रिय भी हैं। शौर्य, तेज, व्यापक प्रसार करने वाले ब्राह्मण थे। उनके प्रमुख शिष्य धृति, दाक्ष्य, दान और युद्ध से न भागना यह गुण भी तो थे ही पर उसके बाद में भी बड़े-बड़े आचार्य ब्राह्मण सहज में प्राप्त होने से उनको राजस्थानकेसरी की उपाधि हुए । इतना ही नहीं पर प्रतापी राजाओं का राज्य चलाने दी गई वह योग्य ही है। वाले भी अमात्य ब्राह्मण ही थे। शकडाल, चाणक्य आदि मेरा उनका प्रथम परिचय जो हुआ वह भ्रांति से ही अनेकों कुशल मन्त्री रहे जिन्होंने राज्य-शासन किस प्रकार प्रारम्भ हुआ । बम्बई में जब उनका चातुर्मास बालकेश्वर चलाया जाय इसकी शिक्षा दी। हरिभद्र, सिद्धसेन दिवाकर में हुआ तो मेरे मन पर प्रतिकूलता का वातावरण था ।
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