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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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सम्यग्ज्ञान
ज्ञान व सम्यग्ज्ञान में हेतु शंका-सम्यग्ज्ञान होने में अनन्तानुबन्धी कारण है या ज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम कारण है ?
समाधान-सात तत्त्वों के स्वरूप को समझ सके तथा जीव, अजीव आदि द्रव्यों को जान सके ऐसे ज्ञानकी प्राप्ति तो ज्ञानावरण कर्म के तथा वीर्यान्तरायकर्म के क्षयोपशम के अधीन है, किन्तु उस ज्ञानका सम्यक्त्व या मिथ्यात्व विशेषण, मिथ्यात्व व अनन्तानुबन्धी के अनुदय व उदय के अधीन है।
मिथ्यात्व व सम्यग्मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्क का अनुदय होने के कारण सम्यग्दर्शन हो जाने से उस ज्ञानकी सम्यग्ज्ञान संज्ञा हो जाती है। यदि मिथ्यात्व या अनन्तानुबन्धी का उदय है तो उस ज्ञानकी मिथ्याज्ञान संज्ञा हो जाती है । छहढ़ाला का पाठी भी इस बात को जानता है, क्योंकि छहढ़ाला में कहा है
सम्यकसाथ ज्ञान होय पै भिन्न अराधो। लक्षण श्रद्धा जान दहमें भेद अबाधो॥ सम्यक् कारण जान ज्ञान कारज है सोई। युगपत् होते हूं प्रकाश दीपकत होइ॥
-जें. ग. 9-4-70/VI/ रो. ला. मित्तल
गुरणस्थानों में चेतना शंका-प्रवचनसार गाथा १२३.१२४, पंचास्तिकाय गाथा ३८-३९ तथा द्रव्यसंग्रह की गाथा १५ में ज्ञान, कर्म व कर्मफल चेतनाओं का स्वरूप दिया है, किन्तु यह स्पष्ट नहीं हुआ कि कौनसी चेतना कौन से गुणस्थान में होती है ?
समाधान-श्री कुन्दकुन्दाचार्य तथा श्री अमृतचन्द्राचार्य के मतानुसार केवलज्ञानी के ज्ञानचेतना होती है और उससे पूर्व कर्मचेतना व कर्मफलचेतना होती है, किन्तु स्थावरजीवों के मात्र कर्मफलचेतना होती है । कहा भी है
सम्वे खलु कम्मफलं थावरकाया तसा हि कज्जजुवं ।
पाणित्तमदिवकंता णाणं विदंति ते जीवा ॥३९॥ पंचास्तिकाय टीका-तत्र स्थावराः कर्म फलं चेतयंते, त्रसाः कार्य चेतयंते, केवलज्ञानिनो ज्ञानं चेतयंते इति ।
अर्थ-सर्व स्थावरजीव समूह वास्तव में कर्मफल को वेदते हैं। त्रस वास्तव में कार्य सहित (कर्म चेतना सहित ) कर्मफल को वेदते हैं और जो प्राणों का अतिक्रम कर गये हैं वे ज्ञानको वेदते हैं ।
टीकार्य-स्थावर कर्मफल को चेतते हैं, बस कर्म चेतना को चेतते हैं, केवलज्ञानी ज्ञानको चेतते हैं।
इससे इतना स्पष्ट हो जाता है कि केवलज्ञानी अर्थात् तेरहवें और चौदहवेंगुणस्थान में तथा सिद्धों में ज्ञानचेतना है । बारहवें गुणस्थान तक, ज्ञानावरणकर्म का उदय होने के कारण, अज्ञानमिश्रित ज्ञान होता है । अतः बारहवें गुणस्थान तक शुद्धज्ञान चेतना नहीं होती है, उनके तो कर्मचेतना व कर्मफलचेतना होती है। स्थावर जीवों
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