________________
१३७८ ]
[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
जीव और अन्तरात्मा में अन्तर शंका-जीव और अन्तरात्मा में क्या अन्तर है ?
समाधान–'इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छ्वास इन चारप्राणों से अथवा चैतन्यरूप प्राण से जो जीता है, जीता था और जीवेगा' उसको जीव कहते हैं-द्रव्यसंग्रह गाथा ३ चित्त के रागद्वेषादिक दोषों के और प्रात्मा के विषय में जिसकी भ्रान्ति दूर हो गई है वह अन्तरात्मा है-समाधितंत्र श्लोक ५। इसप्रकार जीव व अन्तरात्मा के लक्षणों से दोनों का अन्तर जाना जाता है । 'जीव' शब्द में बहिरात्मा ( पहिले से तीसरे गुणस्थान तक के जीव) अन्तरात्मा ( चौथे से बारहवेंगुणस्थान तक के जीव) व परमात्मा ( तेरहवें-चौदहवें गुणस्थानवाले जीव व सिद्धजीव ) तीनोंप्रकार के जीव गर्भित हो जाते हैं किन्तु 'अन्तरात्मा' शब्द से बहिरात्मा और परमात्मा जीवों से रहित, केवल सम्यग्दृष्टिजीव ( चौथे से बारहवें तक ) ही ग्रहण होते हैं। इसप्रकार 'जीव' व 'अन्तरात्मा' में अन्तर जानना चाहिये।
-ज.सं 4-9-58/V/ भागबन्द जैन, बनारस
ज्ञान सामान्य का अर्थ शंका-'ज्ञानसामान्य को देखते हुए केवलज्ञान के मति आदि अवयव मानने में कोई विरोध नहीं आता; ज्ञान विशेष की अपेक्षा से ये अवयव नहीं हैं।' यह धवल १३ पृ० २१५ का वाक्य है ? यहाँ ज्ञान सामान्य का क्या मतलब है ?
समाधान-धवल पृ० १३ पृ० २१५ पर ज्ञान सामान्य से अभिप्राय ज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेद से है।
-पत 28-6-80/ज ला. जैन, भीण्डर 'त्रिशुद्धा मिक्षा' एवं उद्दिष्ट पाहार का अर्थ शंका-उपासकाध्ययन श्लोक ८९० में क्षुल्लक के लिये विशुद्धा भिक्षा बतलाई है। यहाँ पर 'त्रिशुद्धा' से क्या अभिप्राय है ?
समाधान-कृत, कारित, अनुमोदना से रहित भिक्षा, त्रिशुद्धा भिक्षा है। यह तो दसवीं प्रतिमा में हो जाती है । ग्यारहवीं प्रतिमा (क्षुल्लक ) के तो उद्दिष्टाहार का त्याग है, वह तो भिक्षुक है ।
जो णव कोडि विसुद्ध, भिक्खायरेण भुजदे भोज्जं ।
जायण-रहियं जोग्गं, उद्दिट्टाहार-विरदो सो ॥३९०॥ [स्वामि कार्तिकेय अनुप्रेक्षा] जो श्रावक भिक्षाचरण के द्वारा बिना याचना किये, नवकोटि से शुद्ध योग्यमाहार को ग्रहण करता है वह उहिष्टाहार का त्यागी है । अपने उद्देश्य से बनाये हुए आहार को ग्रहण न करना उद्दिष्टआहार का त्याग है।
-जं. ग. 5-9-74/VI/A. फूलचन्द 'नारकानित्याशुभतरलेश्या'.... में नित्य का अर्थ शंका-'नारकानित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रियाः', इस सूत्र में 'नित्य' शब्द का क्या अर्थ है ? 'नित्य' का अर्थ कूटस्थ होता है तो क्या नारकियों को लेश्या व वेदना आदि में हीन अधिकता नहीं होती ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org