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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ११४५
ज्ञान का होना वह सम्यकचारित्र है। इसप्रकार सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ये तीनों ही ज्ञान के परिणमन में आ जाते हैं । इसकारण अभेद विवक्षा में ज्ञान ही परमार्थरूप मोक्ष का कारण सिद्ध हुआ। समयसार गाया १५५ को टीका।
-जं. सं. 26-2-59/V/ अ. कीर्तिसागर सापेक्ष पर्यायदृष्टि से मोक्षमार्ग सम्भव है शंका-क्या पर्यायदृष्टि से मोक्षमार्ग सम्भव है ?
समाधान-जो वस्तु जिसरूप से है उस वस्तु का उसीरूप से श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। आलापपद्धति सूत्र ९५ में कहा है कि वस्तु सामान्य-विशेषात्मक है ।
"सामान्यविशेषात्मकं वस्तु ॥९५॥
सामान्य-विशेषात्मक वस्तु में 'सामान्य' को द्रव्य कहते हैं और विशेष को पर्याय कहते हैं । श्री पूज्यपादाचार्य ने कहा भी है
"द्रव्यं सामान्यमुत्सर्गः अनुवृत्तिरित्यर्थः । तद्विषयो द्रव्याथिकः । पर्यायो विशेषोऽपवादो व्यावृत्तिरित्यर्थः। तद्विषयः पर्यायाथिकः।" सर्वार्थ सिद्धि ११३३ ।
दव्य का अर्थ सामान्य, उत्सर्ग और अनुवृत्ति है। इस सामान्य को विषय करनेवाला नय अथवा दृष्टि द्रव्याथिकनय अथवा द्रव्यदृष्टि है। पर्याय का अर्थ विशेष अपवाद और व्यावृत्ति है। इस विशेष को विषय करनेवाला पर्यायाथिकनय अथवा पर्यायदृष्टि है। श्री अमृतचन्द्राचार्य ने भी इसीप्रकार कहा है
अनुप्रवृत्तिः सामान्य द्रव्यं चैकार्थवाचकाः। नयस्तद्विषयो यः स्याज्ज्ञयो द्रव्याथिको हि सः॥३६॥ व्यावृत्तिश्च विशेषश्च पर्यायश्चकवाचकाः । पर्यायविषयो यस्तु स पर्यायाथिक मतः॥ ४० ॥
( तत्त्वार्थसार प्रथमाधिकार ) अनप्रवृत्ति, सामान्य और द्रव्य ये तीनों शब्द एकार्थवाची हैं। जो नय द्रव्य को विषय करता है वह द्रव्याथिकनय अर्थात् द्रव्यदृष्टि है । ध्यावृत्ति, विशेष और पर्याय ये तीनों शब्द एकार्थवाची हैं । जो नय पर्याय को विषय करता है वह पर्यायाथिकनय अर्थात पर्यायष्टि है।
द्रव्यदृष्टि में पर्याय गौण होने से जीवन संसारी है और न मुक्त है, क्योंकि संसारी और मक्त ये दोनों पर्यायें हैं । अतः द्रव्यदृष्टि में मोक्ष और मोक्ष-मार्ग, ये दोनों पर्याय संभव नहीं हैं । इसीप्रकार श्रद्धागुण की मिथ्या. दर्शन व सम्यग्दर्शन ये दोनों पर्यायें हैं । समयसार की तात्पर्यवृत्ति टीका में कहा भी है
"शुद्धद्रव्याथिकनयेन शुभाशुभपरिणमनाभावान्न भवत्यप्रमत्तः प्रमत्तश्च । प्रमत्तशम्देन मिथ्यादृष्ट्याविप्रमत्ता. तानि षड्गुणस्थानानि, अप्रमत्तशब्देन पुनरप्रमत्ताद्ययोग्यांतान्यष्टगुणस्थानानि गृह्यते।"
स. सा. पृ०७ अजमेर से प्रकाशित ।
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