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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ १०१६ "यथा क्लिनो गुड़ोऽधिकमधुररसः परीतानां रेण्यादीनां स्वगुणापादनात पारिणामिकः । तथाऽन्योऽप्यधिकगुणः अल्पीयसः पारिणामिक इति कृत्वा द्विगुणाविस्निग्धरूक्षस्य चतुर्गणादिस्निग्धरूक्षः पारिणामिको भवति । ततः पूर्वावस्थाप्रच्यवनपूर्वकं तायिकमवस्थानतरं प्रादुर्भवतीत्येकत्वमुपपद्यते । इतरथा हि शुक्लकृष्णतन्तुवत् संयोगे सत्यप्यपारिणामिकत्वात्सर्व विविक्तरूपेणवावतिष्ठेत ।" सर्वार्थ सिद्धि १३७ ।। श्री पं० फूलचन्दजी कृत अर्थ-जैसे अधिक मीठे रसवाला गीला गुड़ उस पर पड़ी हुई धूलि को अपने गुणरूप से परिणमाने के कारण पारिणामिक होता है, उसीप्रकार अधिकगुणवाला अन्य भी अल्पगुणवाले का पारिणामिक होता है । इस व्यवस्था के अनुसार दो शक्त्त्यंशवाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणु का चार शक्त्त्यंशवाला स्निग्ध या रूक्ष परमाणु पारिणामिक होता है। इससे पूर्व अवस्थाओं का त्याग होकर उनसे भिन्न एक तीसरी अवस्था ही प्राप्त होकर उनमें एकरूपता आ जाती है। अन्यथा सफेद और काले तन्तु के समान संयोग के होने पर भी पारिणामिक न होने से सब अलग-अलग ही स्थित रहेगा। इसप्रकार यह बतलाया गया कि बंध होने पर एकत्व हो जाता है, किन्तु संयोग में एकत्व नहीं होता है । श्री अमृतचन्द्राचार्य भी बंध में एकत्व स्वीकार करते हैं बन्धं प्रतिभवत्यैक्यमन्योन्यानुपवेशतः । युगपद द्रावितस्वर्णरौप्यवज्जीवकर्मणोः॥१८॥ तत्वार्थसार अ.५ जिसप्रकार एकसाथ पिघलाये हुए सुवर्ण और चांदी का एक पिण्ड बनाये जाने पर परस्पर प्रदेशों का एक दूसरे में प्रवेशानुप्रवेश हो जाने से एकरूपता आजाती है उसीप्रकार बंध की अपेक्षा जीव और पोद्गलीक कर्मों के प्रदेशों का परस्पर में प्रवेशानुप्रवेश हो जाने से दोनों में एकरूपता हो जाती है। जो एकरूपता स्वीकार नहीं करते वे बंधतत्त्व को स्वीकार नहीं करते । बंधतत्त्व को न मानने से मोक्षतत्त्व के अस्वीकारता का प्रसंग आजायगा, क्योकि बंधपूर्वक ही मोक्ष होता है । जो बंधा नहीं उसके लिये मोक्ष का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है। मुक्तश्चेत् प्राकभवेद्वन्धो नो बन्धो मोचनं कथम् । अबन्धे मोचनं नैव मुञ्चेरों निरर्थकः ॥ यदि जीव मुक्त होता है तो इस जीव के बन्ध अवश्य होना चाहिये, क्योंकि यदि बन्ध न हो तो मोक्ष (छूटना ) कैसे हो सकता है। अतः प्रबन्ध की मुक्ति नहीं हुआ करती, उसके तो मुञ्च् धातु का प्रयोग ही व्यर्थ है। न. ग. 8-2-83/VII/ श्री सुलतानसिंह टोन व प्लेटिनम मिश्रित धातुरूप हैं तथा पृथ्वीरूप ही हैं शंका-टीन, प्लेटिनम मावि को पृथ्वी के ३६ भेदों में क्यों नहीं गिनाया ? धवल १२२७४-२७५ प्राकृत पंचसंग्रह १७७ तथा मूलाचार अधिकार ५ गाया ८-१२ अथवा गाथा २०६-२०९ में छत्तीस भेव पृथ्वियों के बताये हैं। परन्तु उनमें टीन व प्लेटिनम के नाम नहीं कहे । समाधान-टीन, प्लेटिनम आदि शुद्ध धातु नहीं हैं, मिश्रित हैं; अतः पृथिवियों के ३६ भेदों में उन्हें नहीं गिनाया। -पन 13-2-79/" / ज. ला. जैन, श्रीण्डर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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