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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : लोहे का स्वर्णरूप परिणमन शंका-यह ठीक है, कि रसायन के योग से लोहा भी सोना बन जाता है, किन्तु जिसप्रकार अग्नि के संयोग हटने पर जल अपने वास्तविक स्वरूप पर आ जाता है । तो क्या सोना भी रसायन का प्रभाव हटने पर अपने वास्तविक स्वरूप को ग्रहण कर लेता है । यदि सोना भी अपना वास्तविक स्वरूप ग्रहण कर लेता है तो यही सिद्ध होता है कि अन्यद्रष्य की पर्याय अन्यद्रव्य को एकसमय मात्र ही प्रभावित करती है सर्वदेश नहीं तथा उपचार से ही उसे सोना कह सकते हैं ।
रसायन के योग से लोहा सोना बन जाना कोई आश्चर्य नहीं, किन्तु यह कितने पाश्चर्य की बात है कि जो शक्तिरूप से सोना है, वह तो परके संयोग से लोहा बना हुआ है और जो शक्तिरूप से लोहा है वह परके संयोग से सोना बना हुआ है।
लोहे से सोना बनने में निमित्तकारण तथा उपादानकारण क्या है ? अर्थात् स्वर्णरूप कार्य के निमित्त व उपादान एक दूसरे के प्रतिकूल हैं । आगम में कार्य की उत्पत्ति अनुकूल निमित्त अनुकूल उपादान तथा बाधक कारण के अभाव होने पर मानी है। अतः स्पष्ट करें। पुनश्च इसके अन्तर्गत बीज व भूमि का दृष्टान्त विया, इनमें निमित्त व उपादान कौनसा है?
___समाधान-रसायन के प्रयोग से जो लोहा सुवर्ण हो जाता है यह पुद्गल की द्रव्यपर्याय है मौर अग्नि के संयोग से जो जल का स्पर्शगुण शीतल से उष्णरूप परिणमन कर जाता है वह गुणपर्याय है । पग्नि का संयोग दूर हो जाने पर जल में नवीन उष्णता पानी बन्द हो गई और उसमें से उष्णता निकल कर हवा में मिलने लगी, क्योंकि भौतिक परिवर्तन था। लोहे का सुवर्ण बनने में रासायनिक परिवर्तन हो जाता है अर्थात् लोहा और रसायन ये दोनों मिलकर सुवर्णरूप परिणमन कर जाते हैं । अतः रसायन के पृथक् होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है।
-जं. ग. 17-7-69/""| रो. ला. जैन सोने और तांबे का भी [ बन्ध हो जाने पर ] एकत्व सम्भव है शंका-सोनगढ़ से प्रकाशित 'ज्ञानस्वभाव ज्ञेयस्वभाव' पुस्तक के पृ० ३३० पर लिखा है 'सोना और तांबा कभी एकमेक होता ही नहीं।' क्या यह ठीक है ?
समाधान-उपयुक्त कथन ठीक नहीं है, क्योंकि सोने और तांबे का बंध हो जाने पर दोनों में एकत्व हो जाता है । श्री वीरसेन महानाचार्य ने कहा भी है
"बंधो णाम दुभावपरिहारेण एयत्तावत्ती।" धवल पु० १३ पृ० ७। अर्थ-द्वित्व का त्यागकर एकत्व की प्राप्ति का नाम बंध है। "एकोभावो बंधः सामीप्यं संयोगो वा युतिः।" धवल पु० १३ पृ० ३५८ । अर्थ- एकीभाव का नाम बंध है । समीपता या संयोग का नाम युति है। इसी बात को श्री पूज्यपाद आचार्य कहते हैं
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