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० रतनचन्द जैन मुख्तार
यदि वादविवाद: स्यान्महामतविघातकृत ।
देशान्तरगतिस्तस्मान्न च दुष्टो वर्षास्वपि ॥१०॥६०॥ अर्थ-वर्षाकाल में संघ के कार्य के लिये यदि मुनि बारह योजन तक कहीं जायगा तो उसका प्रायश्चित्त ही नहीं है। यदि वाद-विवाद से महासंघ के नाश होने का प्रसंग हो तो घर्षाकाल में भी देशान्तर जाना दोष युक्त नहीं है।
--जै. ग. 18-1-68/VI/र. ला.प्जैन, मेरठ केशलोंच का अधिकारी कौन ? शंका-जैनागमानुसार केशलोंच के अधिकारी कौन होते हैं ?
समाधान-केशलोंच के अधिकारी उद्दिष्ट भोजन त्यागी होते हैं अर्थात ग्यारहवीं प्रतिमाघारी श्रावक, मनि व आर्यिका केशलोंच के अधिकारी हैं किन्तु नीचे की अवस्था वाला भी अभ्यास रूप से केशलोंच कर सकता है जैसे श्रावक भी एकान्त में नग्न होकर सामायिक आदि कर सकते हैं।
-णे. ग. 27-6-6 3/IX-X/मो. ला. सेठी
मुनिसंघ में मोटर शंका-क्या मुनि या आचार्य अपने साथ में मोटर रखने की प्रेरणा दातारों से कर सकते हैं ?
समाधान-मुनि या प्राचार्य के समस्त परिग्रह का त्याग होता है। उनके अयाचक वृत्ति होती है। वे किसी से भी किसी प्रकार की याचना नहीं करते । जो ऐसा करते हैं वे वास्तव में जैन मुनि नहीं। मुनि की बात जाने दो यदि कोई क्षुल्लक भी चन्दा करता है, पुस्तकें बेचता है, प्रेस लगाता है, मकान खरीदता है, उसकी मरम्मत कराता है तो यह सब अनुचित है, क्योंकि यह सब आरम्भ है और आरम्भ में छह काय के जीवों की हिंसा होती है।
-गें. ग. 15-2-62/VII/ नि. प. जैन, महमूदाबाद मिथ्यात्वी मुनि के उपदेश से भी सम्यक्त्व सम्भव है शंका-द्रव्यलिगो-मिथ्यादृष्टिमुनि का उपदेश उस ही भव में या भवान्तर में किसी अन्य जीव को सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में कारण हो सकता है या नहीं ?
समाधान-सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति का कारण जिनवाणी है अर्थात् भगवान ने जो उपदेश दिया है वह सम्यग्दर्शन में कारण है। यदि उसी उपदेश को द्रव्यलिंगी मुनि सुनाता है तो उससे सम्यग्दर्शन उत्पन्न होने में कोई बाधा नहीं है, क्योंकि वह मूल उपदेश तो तथंकर भगवान का है। जैसे एक राजा का दूत अन्य राजा से अपने राजा का संदेश कहता है। यद्यपि उससमय संदेश को दूत कह रहा है, किन्तु मूल संदेश तो राजा का है।
-जं. ग. 12-12-66/VII/ र. ला. जैन
पाहार का काल शंका-मूलाचार पिंडशुद्धि अधिकार गाया ७३ में भोजन के लिये तीन मुहूर्त, दो मुहूर्त और एक मुहूर्त का समय कहा है तो क्या यह काल मुद्रा लगाने के बाद से है ? दोपहर पश्चात् मुनियों की चर्या का कौनसा काल है?
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