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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार ।
श्रद्धा सुमन * डा० पण्डित पन्नालालजी साहित्याचार्य, सागर
श्री सिद्धान्तसूरि ब्रह्मचारी रतनचन्दजी मुख्तार जैन वाङमय के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् थे। पूर्वभव के संस्कारवश मात्र अनवरत स्वाध्याय के द्वारा आपने चारों अनुयोगों का अवगम प्राप्त किया था। गृहस्थावस्था में रहते हए भी आपकी उत्कृष्ट साधना थी।
सन् १९४४ में जब वीजी ईसरी से पैदल चल कर सागर पधारे थे तब भाई नेमिचन्दजी तथा अन्य साथियों के साथ आप भी पर्युषण पर्व में सागर पधारे थे तभी से आपके साथ परिचय हुआ था जो निरन्तर बढ़ता गया।
___मैं रथयात्रा के प्रसंग में तीन बार सहारनपुर हो आया हूँ। आचार्यकल्प श्रुतसागरजी महाराज के पास प्रायः आप प्रत्येक चातुर्मास में पहुँचते थे, जब कभी सौभाग्य से वहाँ भी आपसे मिलना हो जाता था। श्री १०५ विशुद्धमती माताजी द्वारा दत त्रिलोकसार ग्रन्थ के पाठभेद लेने के लिए १०-१२ दिन निवाई में आपके साथ रहने का प्रसङ्ग प्राप्त हुआ था। करणानुयोग की गणित सम्बन्धी गहन गुत्थियाँ आप सरलता से सुलझाते थे ।
अापकी स्मृति में ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, यह जानकर प्रसन्नता है। इस स्मरण की वेला में मैं आपकी प्रात्मा को अपने श्रद्धासुमन सादर समर्पित करता हूँ।
सिद्धांत शास्त्रों के विशिष्टज्ञाता मुख्तार श्री * रतनलालजी कटारिया, केकड़ी
पू० ब्र० पण्डित रतनचन्दजी मुख्तार, सहारनपुर संस्कृत प्राकृत भाषाओं के विशेष अध्येता नहीं थे फिर भी उन्होंने हिन्दी के माध्यम से ही अपने शास्त्र-ज्ञान को काफी बढ़ा लिया था। उनका एतद्विषयक क्षयोपशम असाधारण था। श्री धवल-जयधवल-महाधवल जैसे उच्च कोटि के सिद्धांत ग्रन्थों पर उनका अप्रतिम अधिकार था. अच्छे अच्छे विद्वान जिस विषय को समझने की क्षमता तक नहीं रखते उसमें उनकी अप्रतिहत गति थी इसीका परिणाम है कि उन्होंने उक्त सिद्धांत ग्रन्थों के अनुवादादि की अनेक गलतियों को प्रकट कर श्रुत को प्रांजल किया था।
अनेक दि० श्वे० जैन मुनि संघों में उन्होंने इन सिद्धांत ग्रन्थों का अध्यापन किया था । ऐसे महान् निस्पृह विद्वान् अब कहाँ।
उन्होंने बहुत वर्षों तक 'जैन संदेश' में 'शंका-समाधान' के रूप से ज्ञान की विपुल सामग्री प्रस्तुत की भी इस विद्या में भी वे निष्णात थे। मुझे भी इस कार्य में उन्होंने कुछ वर्षों तक सहयोगी बनाया था। ईसरी में ३० गणेशप्रसादजी वर्णीजी को वे मेरे शंका-समाधानों को पढ़कर सुनाया करते और वापिस लिखते कि--वर्णीजी को ये बहुत पसंद आये इस तरह मेरा उत्साहवर्द्धन करते रहते । बाद के वर्षों में 'जैन गजट' में भी अंतिम समय तक इस 'शंका-समाधान' विभाग को उन्होंने चाल रखा।
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