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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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ग्रन्थों [ जो कि गणधर या श्रुतकेवली द्वारा रचित हों ] के पढ़ने का निषेध किया है। फिर गृहस्थ को गणधररचित अंग का ज्ञान कैसे हो सकता है। [ अर्थात् नहीं हो सकता ]
-पाचार 9-10.80/ ज. ला. जैन, भीण्डर समाचार पत्र [ News Paper ] कुशास्त्र हैं या प्रशास्त्र? शंका-रत्नकरण्ड श्रावकाचार पृ० ५९ श्लोक ३० को टीका के सन्दर्भ में समाचार पत्रों का वह अंश जिसमें मात्र समाचार हैं वह कुशास्त्र में आयेगा या उसे अशास्त्र कह सकते हैं ?
समाधान-समाचार पत्रों का समाचार अंश हिंसा आदि का पोषक नहीं है अर्थात् हिंसा आदि तथा विषय कषाय प्रारम्भ में धर्म नहीं बतलाता है अतः वह कुशास्त्र तो कहा नहीं जा सकता है। वह अंश विकथा है तथा उसका पढ़ना व सुनना अनर्थदण्ड है। यदि उससे पारमार्थिक या लौकिक कार्य की सिद्धि होती है तो अनर्थदण्ड नहीं है । मुनि को लौकिक समाचार पत्र नहीं पढ़ने चाहिए।
-जें. ग. 25-3-71/VII/ र.ला. जैन
स्वाध्याय के अयोग्यकाल ।
शंका-पठन-पाठन में अकाल समय कौनसा माना गया है ।
समाधान-बारह प्रकार के तप में स्वाध्याय श्रेष्ठ है। इसलिए पठन-पाठन के अकाल समय का अवश्य ज्ञान होना चाहिए।
तपसि द्वादशसंख्ये स्वाध्यायः श्रेष्ठ उच्यते सद्धिः ।
अस्वाध्यायविनानि यानि ततोऽत्र विद्वभिः ॥१०॥ अर्थ-साध पुरुषों ने बारह प्रकार के तप में स्वाध्याय को श्रेष्ठ कहा है। इसलिए विद्वानों को स्वाध्याय न करने के दिनों को जानना चाहिये।
-पर्वसु नन्दीश्वर-वरमहिमा दिवसेषु चोपरागेषु । सूर्याचन्द्रमसोरपि नाध्येयं जानता वतिना ॥ अतितीवदु:खितानां रुवतां संवर्शने समीपे च ।
स्तनयिलुविद्य दम्रष्वतिवृष्टयाउल्कनिर्घात ॥ अर्थ-पवंदिनों में, नन्दीश्वर के श्रेष्ठ महिमा दिवसों अर्थात् अष्टाह्निका दिनों में और सूर्यचन्द्र का ग्रहण होने पर विद्वान व्रती को अध्ययन नहीं करना चाहिये ।
अतिशय तीव्र दुःख से युक्त और रोते हुए प्राणियों को देखने या समीप में होने पर मेघों की गर्जना व बिजली के चमकने पर और अतिवृष्टि के साथ उल्कापात होने पर अध्ययन नहीं करना चाहिये।
विशेष के लिये धवल पु० ९ पृ० २५७.२५८ देखना चाहिये ।
-जे.ग. 1-7-65/VII/ ..........
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