________________
भ्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ६४६
प्याज के खाने में अनन्त जीवों का घात होता है अतः इसका खाना ठीक नहीं है।
-जे. सं. 28-11-57/VI/................ ककड़ी प्रादि तथा बालू आदि के भक्षण में दोष की समानता है या असमानता
शंका-सप्रतिष्ठित लौकी, ककड़ी आदि के खाने में तथा आलू, अदरक, मूली आदि कंदमूल खाने में क्या समान दोष हैं या होनाधिक दोष हैं ?
समाधान-पालू, अदरक, मूली आदि कंदमूल भी तो सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति हैं। श्री वीरसेन आचार्य ने षखंडागम सत् प्ररूपणा सूत्र ४१ की टीका में कहा भी है
"बादरनिगोदप्रतिष्ठितश्चान्तरेषु ध यन्ते, क्व तेषामन्तर्भावश्चेत् ? प्रत्येकशरीरवनस्पतिष्विति ब्रमः के ते ? स्नुगावकमूलकादयः ।" धवल पु० १ पृ. २७१ ।
प्रश्न-बादर निगोद से प्रतिष्ठित वनस्पति दूसरे आगमों में सुनी जाती है, उसका अन्तर्भाव वनस्पति के किस भेद में होगा?
उत्तर-प्रत्येक शरीर वनस्पति में उस सप्रतिष्ठित वनस्पति का अन्तर्भाव होगा।
प्रश्न-वे बादर निगोद प्रतिष्ठित अर्थात सप्रतिष्ठित वनस्पतियां कौन हैं ?
उत्तर-थूहर, अदरक और मूली आदि बादरनिगोद सप्रतिष्ठित वनस्पतियाँ हैं । उस सप्रतिष्ठितप्रत्येकवनस्पतियों की पहचान निम्न चिह्नों के द्वारा होती है:
गूढसिरसंधिपव्वं, समभंगमहीरुहं च छिण्णाह। साहारणं सरीर, तविवरीयं च पत्तेयं ॥ १७॥ मूले कंदे छल्ली, पवाल सालदलकुसुम फलबीजे । समभंगे सदिणंता, असमे सदि होंति पत्तेया ॥ १८ ॥ कन्दस्स व मूलस्स व साला खंदस्स वावि बहुलतरा ।
छल्ली साणंतजीवा, परोयजिया तु तणुकवरी ॥१८९।। (१) जिनके शिरा ( बहिस्नायु ) सन्धि ( रेखा-बंध ) और पर्व ( गाँठ ) अप्रकट हो ।
(२) जिसका भंग करनेपर समानभंग हो और दोनों भंगों में परस्पर हीरूक ( अन्तर्गत सूत्र ) तन्तु न लगा रहे।
(३) छेदन करनेपर भी जिनकी पुनः वृद्धि हो जाय ।
(४) जिनकी त्वचा, मूलकन्द, प्रवाल, नवीन कोंपल ( नवीन कोंपल, अंकुर) क्षुद्रशाला ( टहनी ) पत्र, कूल, फल, बीज तोड़ने से समान भंग हो ।
(५) जिस कन्द, मूल, क्षुद्र शाखा, स्कंध की छाल मोटी हो।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org