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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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समाधान-तीन दिन ( २४ प्रहर ) का दही मर्यादा रहित हो जाने के कारण अशुद्ध है, अतः अशुद्ध दही से निकाला हुआ घी कैसे शुद्ध हो सकता है ।"
- जै. ग. 5-9-74 / VI / ब्र. फूलचन्द
दही व छाछ की मर्यादा
शंका- वही व छाछ की क्या मर्यादा है ?
समाधान -- दही व छाछ की मर्यादा आर्ष ग्रन्थों में दो दिन की कही गई है ।
नीलो सूरणकंदो दिवसद्वितयोषिते च दधिमथिते ।
विद्ध' पुष्पितमन्नं कालिगं द्रोणपुष्पिका त्याज्या ॥ ६-८४ ।। अमितगति श्रावकाचार
" षोडश प्रदरावुपरि त दधि च त्यजेत् । " ( षट्प्राभृत संग्रह, चारित्रपाहुड़, श्लोक २१ की टीका पृ. ४३)
बधितादिकं सर्वं त्यजेदृध्वं दिनद्वयात् ।
सुधीः पापाविभीतस्तु मृतं द्वये केन्द्रियादिभिः ॥१७ १०९ ॥ प्रश्नोत्तर श्रावकाचार
इन सब प्रग्रन्थों में दही व छाछ की मर्यादा सोलहपहर अर्थात् दो दिन बतलाई गई है । यदि उससे पूर्व भी रस चलित हो जावे तो वह अभक्ष्य हो जाता है ।
- जै. ग. 26-10-67/ VII / र. ला. जैन, मेरठ
मक्खन अभक्ष्य है
शंका- नौनी घी ( मक्खन ) की कुछ मर्यादा है क्या ? उस बीच तो वह खाया जा सकता है ?.. समाधान - नवनीत ( लूणी, मक्खन ) की यद्यपि दो मुहूर्त की मर्यादा है सो तपावने की अपेक्षा है, खाने की अपेक्षा नहीं कही गई है। खाने का तो निषेध है ।
यन्मुहूर्तयुगतः परः सदा, मूच्छंति प्रचुरजीवराशिभिः । तलिंति नवनीतमत्र ये, ते व्रजंति खलु कां गतिंगृताः ॥ ५ ॥ ३६ ॥
-अमितगति श्रावकाचार
अर्थ - लूणी दोय मुहूर्त पीछे प्रचुर जीवनि के समूहनि करि मूच्छित होय है । जो लूणी को खाय हैं मरकर कौन गति को जाय हैं ? अर्थात् कुगति को जाय हैं ।
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अल्प फलवहुविघातान्मूलक मार्द्राणि शृङ्गवेराणि । नवनीत निम्बकुसुमम्
कैतकमित्येवमवहेयम् ॥८५॥ रत्नकरण्ड श्रावकाचार
अर्थ – फल थोड़ा और हिंसा अधिक होने से गीले अदरक, मूली, मक्खन, नीम के फूल, केतकी के फूल तथा इनके समान और दूसरे पदार्थ भी छोड़ने चाहिये ।
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गर्म के दही की मर्यादा तीनों ऋतुओं में १६ पहर की है। अतः सोलह पहर से ऊपर के दही का त्याग दूध कर देना चाहिये । चा. पा., टीका २१1४3: अमित श्र. ६८४; सा. ध. 31११; व्रतविधान संग्रह ३१ |
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