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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : हुण्डककाल दोष, मात्र अवसर्पिणी में ही होता है शंका-हुण्डक-काल-दोष उत्सपिणी व अवपिणी दोनों कालों में होता है या मात्र अवसर्पिणी में ही होता है ?
समाधान-हुण्डक काल का दोष अवसर्पिणी काल में ही होता है । उत्सपिणी काल में हुण्डक काल होता हो, ऐसा देखने में नहीं पाया है। जो प्रमाण मिलता है उसमें भी हण्डावसर्पिणी काल का ही कथन है । वह प्रमाण इस प्रकार है
'अवसप्पिणिउस्सप्पिणि कालसलाया गदयसंखाणि ।
हंडावसप्पिणी सा एक्का जाएदि तस्स चिण्हमिमं ॥' अर्थ-असंख्यात अवसर्पिणी उत्सपिणीकाल की शलाकाओं के बीत जाने पर प्रसिद्ध एक हुण्डावसर्पिणी आती है। उसके चिह्न ये हैं । ति० ५० महाधिकार ४१६१५ पृ० ३५४ ।'
-जे. सं. 25-12-58/V/ घ म. के. च मुजफ्फरनगर नारद तथा रुद्र हुण्डावसर्पिणी में होते हैं शंका-नारद तथा रुद्र हुण्डावसर्पिणी के प्रभाव से ही होते हैं या उत्सर्पिणी एवं अन्य अवसर्पिणी काल में भी होते हैं ?
समाधान-नारद तथा रुद्र हुण्डावसर्पिणी के प्रभाव से होते हैं । ( तिलोयपण्णत्ती ४।१६२० पृ० ३५५ ) सामान्य (काल) में नहीं होते। किन्तु हरिवंशपुराण सर्ग ६०, श्लोक ५७१-७२ में लिखा है कि उत्सपिणी में भी ११ रुद्र होते हैं । ह० पु० पृ. ९७६, श्री महावीरजी से प्रकाशित ।
-पत्राचार 14-3-80/ज. ला. जैन, भीण्डर प्रलयकाल में प्रार्य खण्ड में एक योजन वृद्धिंगत भूमि नष्ट हो जाती है शंका-छठे काल के अन्त में जब प्रलय होता है, तब पृथिवी के एक योजन तक की मोटाई जलकर राख बन जाती है। तो फिर बीज रहित अन्नादिक कालान्तर में कैसे उत्पन्न होते हैं ?
समाधान-प्रलयकाल में आर्यखण्ड में चित्रा पृथिवी के ऊपर एक योजन वृद्धिंगत भूमि जलकर नष्ट हो जाती है। (ति.प.४।१५५१) किन्तु अवसर्पिणीकाल. समाप्त होने पर उत्सपिणीकाल के प्रारम्भ में प्रथम सात दिन तक सुखोत्पादक जल की वर्षा होती है, पुनः सात दिन तक क्षीरजल बरसता है, पुनः सात दिन तक अमृत बरसता है जिससे भूमि पर लता, गुल्म इत्यादि उगने लगते हैं । ति. प. ४११५६० ।
-जै.सं. 11-12-58/V/ब. राजमल प्रलय में अग्नि के नष्ट होने पर भी अग्निकायिक नष्ट नहीं होते शका-पंचमकाल के अंत में जब अग्नि नष्ट हो जाती है तो उस समय उन क्षेत्रों में अग्निकाय के जीवों का अभाव हो जाता होगा?
१. समयसार ग. 3४५-४८ ता. वृ. भी द्रष्टव्य हैं।
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