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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ६.५ कैलास पर्वत कहाँ है शंका-कैलासपर्वत कहाँ है ? बताइए । क्या इसके अबस्थान या क्षेत्र के बारे में कोई आगम-प्रमाण मिलता है ?
समाधान-कैलासपर्वत कहाँ पर है, इसका पता नहीं है। श्री प्रादिनाथ भगवान् को मोक्ष गये लगभग एक कोड़ाकोड़ी सागर बीत गये। उस समय से अब तक पृथ्वी में अनेक परिवर्तन हो गये। जहाँ पर्वत थे वहाँ आज समुद्र हैं तथा जहाँ समुद्र थे वहाँ आज पर्वत हैं, इसलिये कैलाशपर्वत के विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। आगम में कैलासपर्वत का उल्लेख अवश्य है, परन्तु कौन कह सकता है कि वह अमुक जगह पर है।'
-पलाघार/ज. ला. जैन, भीण्डर कालोदसमुद्र का किनारा टाँको से काट दिया गया हो, ऐसा है शंका-सर्वार्थ सिद्धि अ०३ सूत्र ३३ की टीका में पृ० १६६ पर लिखा है कि "कालोदसमद्रका घाट ऐसा मालूम देता है [ दिखाई पड़ता है ] कि उसे टॉकी से काट दिया हो।"
समाधान-धातकीखण्ड द्वीप और कालोद का जो सन्धिभाग है वह घाट है। वहाँ पर कालोद समुद्र एक हजार योजन गहरा है। लवण समुद्र किनारे पर मक्खी के पंख के समान गहरा है और आगे-आगे अधिक गहरा है तथा वही बीच में एक हजार योजन गहरा है। पुन: दूसरे किनारे की ओर भी गहराई इसी प्रकार है। परन्तु कालोद किनारे आदि पर सर्वत्र एक हजार योजन गहरा है, इसलिए 'उसको टांकी से काट दिया गया है, ऐसा कहा गया है। कालोद [ कालोदधिसमुद्र ] का किनारा दीवार के समान है, ढालू नहीं है ।
-पवाचार अगस्त 77/1. ला. जैन, भीण्डर नन्दीश्वर द्वीप के ५२ चैत्यालयों को दिशादि का वर्णन शंका-नन्वीश्वर द्वीप के ५२ चैत्यालय किस दिशा में हैं ? और किस प्रकार स्थित हैं ? समाधान-तिलोयपण्णत्ती के पांचवें महाधिकार में गाथा ५७ से ७८ तक निम्न प्रकार कथन पाया है
नन्दीश्वर द्वीप के बहुमध्यभाग में पूर्व दिशा की ओर अंजनगिरि पर्वत है। यह पर्वत १००० योजन गहरा ८४००० योजन ऊँचा, और सब जगह ८४००० योजन विस्तार वाला है। उस पर्वत के चारों ओर चार दिशाओं में चौकोण चार द्रह हैं। इनमें से प्रत्येक १००००० योजन विस्तार वाला है। ये द्रह एक हजार योजन गहरे हैं। नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा और नन्दिघोषा नामक ये चार द्रह, अंजनगिरी के पूर्वादिक दिशाओं में प्रदक्षिणारूप से स्थित हैं। इन द्रहों ( वापिकाओं) के बहुमध्यभाग में दही के समान वणं वाले एक-एक दधिमुख नाम पर्वत हैं। इनमें से प्रत्येक पर्वत की ऊंचाई १०००० योजन प्रमाण है, विस्तार भी १०००० योजन है. गहराई १००० योजन है। ये पर्वत गोल हैं । वापिकाओं के दोनों बाह्य कोनों में से प्रत्येक में दधिमुख के सहश सुवर्णमय रतिकर नामक दो पर्वत हैं। प्रत्येक रतिकर पर्वत का विस्तार व ऊंचाई १००० योजन है और गहराई २५० योजन है।
१. फैलाशपर्वत श्रीनिखर और सिद्धशिखर के बीच में है। यथा-लक्ष कैलाशमासाद्य श्री सिद्धशिखरान्तरे । पौर्णमासीदिने पौषे निरिच्छः समुपाविशत् ॥323|| पर्व ४७ म. पु..
-सम्पादक
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