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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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णिरआउआ जहण्णा जाव दु उवरिल्लओ दु गेवज्जो। जीवो मिच्छत्तवसा भवदिदि हिडिदो बहसो ॥ २५॥
ध. पु. ४ पृ. ३३३, स. सि. २।१०, गो. जी., जी. प्र. ५६०, बा. अणु. आदि
भवपरिवर्तन रूप संसार में भ्रमण करता हुआ यह जीव मिथ्यात्व के वश से जघन्य नरकायुसे लगाकर उपरिम वेयक की भवस्थिति को बहुत बार प्राप्त हो चुका है।
--जं.ग. 20-6-68/VI/....
द्रव्यमुनि का चरमग्नै वेयक तक गमन शंका-धवल में १६ वें स्वर्ग तक असंयत सम्यग्दृष्टि के उत्पाद का वर्णन है तथा जयधवल भाग ३ में द्रयलिंगी मुनि के ही १६ वें स्वर्ग तक जाना बतलाया है सो परस्पर विरोध कथन कैसे ?
समाधान--सामान्य मिथ्याष्टि मरकर बारहवें स्वर्ग से ऊपर उत्पन्न नहीं होता, किन्तु यदि वह द्रव्यलिंगी मुनि है तो मरकर नवग्रं वेयक तक उत्पन्न हो सकता है। असंयत सम्यग्दष्टि सम्यग्दर्शन के कारण सोलहवें स्वर्ग तक उत्पन्न हो सकता, किन्तु यदि वह सम्यग्दृष्टि मुनि है तो सर्वार्थसिद्धि विमान तक उत्पन्न हो सकता है । कहा भी है
गरतिरियसअयवा उक्कस्सेणच्चुदोत्ति णिग्गंया । ण य अयद देसमिच्छा गेवेज्जतोत्ति गच्छंति ॥५४५।। सव्वट्ठोत्ति सुविट्ठी महब्बई ..............
॥५४६॥ त्रिलोकसार अर्थ-प्रसंयत व देशसंयत सम्यग्दृष्टि मनुष्य व तिर्यंच उत्कृष्टपने १६ वें स्वर्ग पर्यंत जाय हैं तात उपरि नाहीं। बहुरि द्रव्य करि संयत ( मुनि ) अर भाव असंयत देशसंयत व मिथ्याष्टि मनुष्य तो उपरिम ग्रंवेयक पर्यंत बाय है। तात ऊपर नाहीं। सम्यग्दृष्टि द्रव्य व भाव करि महाव्रती मनष्य सर्वार्थसिद्धि पर्यंत जाय है।
-जै. ग. 4-1-68/VII/ शा. कु. बड़जात्या
महामुनि ही लौकान्तिक होते हैं
शंका-लौकान्तिक देवों में कौन जीव जन्म ले सकते हैं ? समाधान-संयमी मुनि लोकांतिक देवों में उत्पन्न हो सकते हैं । कहा भी है
इह खेते वेरग्गं बहुभेयं भाविदूण बहुकालं । संजमभावेहि मुणी देवा लोयंतिया होंति ॥८।६४६॥ ति० ५० थुइणिवासु समाणो सहदुक्खेसु संबंधुरिउवग्गे । जो समणो सम्मत्तो सो च्चिय लोयंतिओ होवि ॥६४७॥ ति०१०
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